Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(३०) तए णं से धण्णे सत्थवाहे ते पंच सालिअक्खए सगडी सागडेणं णिज्जाइए पासइ, पासित्ता हट्ट जाव पडिच्छइ २ त्ता तस्सेव मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ रोहिणीयं सुण्हं तस्स कुलघरस्स बहुसु कजेसु य जाव रहस्सेसु य आपुच्छणिजं जाव वट्टावियं पमाणभूयं ठावेइ।
शब्दार्थ - वट्टावियं - घर के कार्यों को वर्तित करना, चलाना। ___ भावार्थ - धन्य सार्थवाह ने उन पांच शालिधान के दानों को गाड़ी-गाड़ों द्वारा लौटाया जाता देखा। मन में बहुत ही प्रसन्न और संतुष्ट हुआ। उसने उन्हें स्वीकार किया। अपने मित्रों, जातीयजनों, स्वजनों, परिजनों तथा चारों वधुओं के पीहर के लोगों के समक्ष पुत्र वधू रोहिणिका को अपने परिवार के बहुत से कार्यों में यावत् रहस्यभूत मंत्रणादि में पूछने योग्य घोषित किया तथा घर के कार्यों को संचालित करने का दायित्व सौंपा एवं सब के लिए प्रमाणभूत-सर्वोच्च अधिकार संपन्न बनाया।
(३१) एवामेव समणाउसो! जाव पंच महव्वया संवटिया भवंति से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं जाव वीईवइस्सइ जहा व सा रोहिणीया। __भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! इसी प्रकार जो साधु-साध्वी यावत् पांच महाव्रतों का संवद्धन करते हैं-तप, त्याग, वैराग्य द्वारा उन्हें संवर्धित करते हैं वे इस लोक में बहुत से श्रमणश्रमणी श्रावक-श्राविका के द्वारा सम्माननीय होते हैं, जिस प्रकार रोहिणिका हुई तथा अन्ततः वे मुक्ति प्राप्त करते हैं।
उपसंहार
(३२) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स णायज्झयणस्स. अयमटे पण्णत्ते त्तिबेमि।
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