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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
महब्बले अणगारे छटुं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । जइ णं ते महब्बलवज्जा (छ) अणगारां छट्ठ उवसंपज्जित्ताणं विहरंति तओ से महब्बले अणगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। एवं (अह) अट्ठमं तो दसमं अह दसमं तो दुवालसं ।
शब्दार्थ - इत्थिणामगोयं - स्त्री नाम गोत्र, णिव्वत्तेंसु - निर्वर्तन-उपार्जन किया । भावार्थ - तपश्चर्या में छल प्रयोग के परिणाम स्वरूप अनगार महाबल ने स्त्री नाम गोत्र कर्म का उपार्जन किया। जब महाबल के अतिरिक्त अवशिष्ट छह अनगार उपवास स्वीकार करते हुए विहरण शील रहते तब महाबल अनगार बेला करता। जब वे बेला करते तब महाबल तेला करता। इसी प्रकार - उत्तरोत्तर जब वे तेला करते तब वह चार दिन का उपवास करता। जब वे चार दिन का उपवास करते तो वह पांच दिन का उपवास करता । वह, यह सब साथी अनगारों से छिपाकर करता ।
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(१३)
इमेहि य णं वीसाएहि य कारणेहिं आसे विय बहुलीकएहिं तित्थयरणामगोयं कम्मं णिव्वत्तिंसु तंजहा
अरहंतसिद्धपवयणगुरुथेर बहुस्सुए तवस्सीसुं । वच्छल्लया य तेसिं अभिक्ख णाणोक्ओगे य । दंसणविणए आवस्सए य सीलव्वए णिरइया (रं) रो । खणलवतवच्चियाए वेयावच्चे समाही य । अप्पुव्वणाणगहणे सुयभत्ती पवयणे पभावणया । एहिं कारणेहिं तित्थयरत्तं लहइ (जीओ) सो उ ।
शब्दार्थ - तवच्चियाए - तपः- त्यागयुक्त ।
भावार्थ आगे लिखे गए बीस कारणों से, जिनका अनेकजनों ने सेवन किया है, उन्होंने तीर्थंकर नाम गोत्र का उपार्जन किया- १. अरहंत २. सिद्ध ३. श्रुतज्ञानरूप प्रवचन ४. धर्मोपदेष्टा गुरु ५. वय, ज्ञान तथा पर्याय आदि की दृष्टि से स्थविर ६. बहुश्रुत ७. तपस्वी - इनके प्रति वात्सल्य भाव रखना - इनका आदर-सत्कार करना ८ प्रतिक्षण ज्ञानोपयोग में उद्यत रहना ६. दर्शन - सम्यक्त्वशुद्धि १०. विनय गुरु एवं ज्ञानी के प्रति विनीत भाव ११. षडावश्यक करना
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