Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - तपश्चरण में छल
३४१
सदृरा त
महाबल की साथियों सहित दीक्षा
(१०) तए णं से महब्बले जाव महया इड्डीए पव्वइए एक्कारसअंगाई० बहूहिं चउत्थ जाव भावेमाणे विहरइ।
भावार्थ - फिर राजा महाबल ने बड़े ऋद्धि पूर्ण समारोह के साथ प्रव्रज्या स्वीकार की। ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत से उपवास यावत् अधिकाधिक तपश्चरण पूर्वक आत्मानुभावित हुआ, विहरणशील रहा।
सदृश तपश्चरण
(११) तए णं तेसिं महब्बल पामोक्खाणं सत्तण्हं अणगाराणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहो-कहासमुल्लावे समुप्पजित्था-जं णं अम्हं देवाणुप्पिया! एगे तवोकम्मं उवसंपजित्ताणं विहरइ तं णं अम्हेहिं सव्वेहिं तवोकम्म उवसंपजित्ताणं विहरित्तए-त्तिक? अण्णमण्णस्स एयमढे पडिसुणेति २ त्ता बहूहिं चउत्थ जाव विहरंति। . भावार्थ - तदनंतर किसी समय महाबल आदि सात अनगार एकत्र हुए। परस्पर इस प्रकार कथा समुल्लाप-वार्तालाप हुआ-हम एक ही प्रकार का तप कर्म करें तथा वैसा करते हुए ही विहरणशील रहें। यों सोचकर उन्होंने यह अभिप्राय आपस में स्वीकार किया तथा उपवास से लेकर क्रमशः उच्चातिउच्च तप करते रहे।
तपश्चरण में छल..
(१२) तए णं से महब्बले अणगारे इमेणं कारणेणं इत्थिणामगोयं कम्मं णिव्वत्तेसु जइ णं ते महब्बलवजा छ अणगारा चउत्थं उवसंपजित्ताणं विहरंति तओ से
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