________________
२१२
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
करते हुए बालक देवदत्त की सब ओर खोज की। उसे बालक की आवाज-छींक आदि सुनाई नहीं पड़ी। इस प्रकार बालक की कुछ भी खोज खबर नहीं लगी। तब वह घर पर पहुंचा तथा धन्य सार्थवाह के पैरों पर गिर पड़ा, कहने लगा - स्वामी! भद्रा सार्थवाही ने स्नानादि करवा कर बालक को मुझे सौंपा, मैंने उसे गोद में लिया।
इसके पश्चात् उसने समस्त घटना कह सुनाई, जो घटित हुई थी। स्वामी! न मालूम बालक देवदत्त को कोई फुसला कर ले गया हो, किसी ने उसका अपहरण कर लिया हो, खड्डे आदि में फेंक दिया हो।
(२५) तए णं से धण्णे सत्थवाहे पंथयस्स दासचेडयस्स एयमढं सोचा णिसम्म तेण य महया पुत्तसोयणाभिभूए समाणे परसुणियत्ते व चंपगपायवे धसत्ति धरणीयलंसि सव्वंगेहिं सण्णिवइए।
शब्दार्थ- पुत्तसोयणाभिभूए - पुत्र-शोक से व्यथित, परसुणियत्ते - कुठार से काटे हुए।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह दासपुत्र पन्थक से यह सुनकर पुत्र शोक से अत्यंत व्यथित होकर, कुठार से काटे गए चंपक वृक्ष की तरह, निढाल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।
वृत्तांत की गवेषणा
तए णं से धण्णे सत्थवाहे तओ मुहुत्तरस्स आसत्थे पच्छागयपाणे देवदिण्णस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ देवदिण्णस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं महत्थं पाहुडं गेण्हइ २ त्ता जेणेव णगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महत्थं पाहुडं उवणेइ २ त्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! मम पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए देवदिण्णे णामं दारए इढे जाव उंबरपुप्फंपिव दुल्लहे सवणयाए किमंग पुण पासणयाए?
शब्दार्थ - पच्छागयपाणे - होश में आया, महत्थं - महार्थ-बहुमूल्य, पाहुडं -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org