Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भवनादि पर से गिर जाने पर, विदेसत्थंसि - विदेश चले जाने पर, विप्पवसियंसि - परिवार आदि का वियोग हो जाने पर, कुलघरवग्गं - पीहर के लोग, सालिअक्खए - शालि धान के दाने, परिक्खणट्ठयाए - परीक्षणार्थ-परीक्षा के लिए, का - कौन, किहं - किस प्रकार।
भावार्थ - उस सार्थवाह को किसी दिन मध्यरात्रि के समय यह विचार उत्पन्न हुआ कि मैं राजगृह नगर में बहुत से विशिष्टजनों के, अपने कुटुम्ब के कार्यों में करने योग्य उपक्रमों में, मंत्रणाओं में, गोपनीय तथा रहस्यभूत परिचिंतन में, निश्चय योग्य व्यवहार में पूछने योग्य हूँ। मैं सबके लिए मेढ़ी, प्रमाणभूत, आलंबन तथा चक्षुभूत हूँ। सभी के कार्यों को बढ़ाने वाला हूँउन्नति की ओर ले जाने वाला हूँ। मेरे चले जाने पर, च्युत हो जाने पर, मर जाने पर, आकस्मिक दुर्घटनावश हाथ-पैर टूट जाने पर, बीमार हो जाने पर, भवन आदि से गिर जाने पर, विदेश चले जाने पर अथवा पारिवारिकजनों से विमुक्त हो जाने पर, इस कुटुम्ब का आधार, आलंबन तथा प्रतिबंध-सबको मिलाकर चलाने वाला न जाने कौन होगा? अतः मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि मैं कल प्रातःकाल, सूरज की किरणें फैल जाने पर, यावत् विपुल अशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्य पदार्थ तैयार करवाकर, मित्रों, जातीयजनों, परिवार के लोगों, स्वजनों, संबंधियों परिजनों तथा चारों वधुओं के पीहर के लोगों को आमंत्रित करूँ और उनको विपुल अशन, पान तथा धूप, पुष्प, वस्त्र, सुगंधित पदार्थ आदि द्वारा, यावत् सत्कार एवं सम्मान करूँ, वैसा कर उनके समक्ष अपनी चारों पुत्रवधुओं की परीक्षा के लिए पांच-पांच शालि धान के दाने उन्हें दूँ और यह जान सकूँ कि कौन उनका किस प्रकार संरक्षण, संवर्द्धन और संगोपन करती हैं?
विवेचन - धन्य सार्थवाह ने भविष्य की चिंता करते हुए परीक्षणीय के रूप में पुत्रों का चयन न कर, पुत्र वधुओं का चयन किया। यह उसकी दूर दृष्टि का परिचायक है। यद्यपि स्त्री और पुरुष दोनों ही परिवार रूपी रथ का वहन करने वाले हैं किंतु परिवार के पालन, परिरक्षण, संवर्द्धन में स्त्री का बड़ा महत्त्व है। पुरुष द्रव्य का अर्जन करता है परंतु उसका सम्यक् विनियोग तभी हो पाता है, जब गृहिणी कुशल हो। परिवार के शिशुओं को गृहिणियाँ ही उत्तम संस्कार देती हैं। बाहर से आने वाले अतिथियों के भोजन, सत्कार आदि का दायित्व भी उन पर ही होता है। चाहे कोई परिवार कितना ही धनाढ्य क्यों न हो, यदि परिवार की महिलाएँ बुद्धिमती, सुयोग्य और व्यवहार कुशल न हों तो परिवार की प्रतिष्ठा और गरिमा के अनुरूप कार्य नहीं हो सकते। सामाजिक प्रतिष्ठा आदि के मूल में भी परिवार की महिलाओं की योग्यता ही मुख्य
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