Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सद्दावेत्ता जाव तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं तं सेयं खलु मम एए पंच सालिअक्खए सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए संवड्डेमाणीए - त्तिकदृ एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कुलघरपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! एए पंच सालिअक्खए गेण्हइ २ त्ता पढमपाउसंसि महावुट्ठिकायंसि णिवइयंसि समाणंसि खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेह, करेत्ता इमे पंचसालिअक्खए वावेह २ त्ता दोच्चंपि तच्चपि उक्खयणिहए करेइ, करेत्ता वाडिपक्खेवं करेह, करेत्ता सारक्खमाणा संगोवेमाणा अणुपुव्वेणं संवड्डेह।
शब्दार्थ - पढमपाउसंसि - प्रथम वर्षाकाल में, महावुट्टिकायंसि - अत्यधिक वर्षा होने पर, णिवइयंसि - निपतित होने पर, खुड्डागं - छोटी, केयारं - केदार-क्यारी, सुपरिकम्मियंसुपरिकर्मित - बोने योग्य बनाना, वावेह - बोना, उक्खयणिहए - उखाड़ कर दूसरे स्थान पर रोपना, वाडिपक्खेवं - बाड़ लगाना।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह ने फिर अपने जातीय जन यावत् पीहर के लोगों के समक्ष चौथी पुत्र वधू रोहिणिका को बुलाया यावत् धान के दाने लेकर सारी बात पर विचार करते हुए रोहिणिका ने सोचा, इसमें कोई न कोई कारण है। मुझे ये पांच धान के दाने दिए हैं और इनकी सुरक्षा, संगोपन, संवर्धन का कहा है। यों विचार कर उसने अपने पीहर के व्यक्तियों को बुलाया और कहा कि आप इन पांच धान के दानों को लें और पहली वर्षा ऋतु में जब पर्याप्त वृष्टि हो जाए तब एक छोटी सी क्यारी को साफ-सुथरी बनाकर, बोने योग्य तैयार कर इन दानों को बो दें और इन्हें दो-तीन बार उखाड़ कर दूसरे स्थान पर रोपें। रक्षार्थ बाड़ बनाएं। इस प्रकार संरक्षण, संगोपन करते हुए क्रमशः वृद्धि करें।
(१०) तए णं ते कोडुंबिया रोहिणीए एयमढे पडिसुणेति २ त्ता ते पंच सालिअक्खए गेहंति २ ता अणुपुव्वेणं सारक्खंति संगोविंति विहरंति। तए णं ते कोडुंबिया पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि णिवइयंसि समाणंसि खुड्डागं केयारं सुपरिकम्मियं करेंति २ त्ता ते पंच सालिअक्खए ववंति २ त्ता दोच्चपि तच्चपि अक्खयणिहए करेंति २ त्ता वाडिपरिक्खेवं करेंति २ त्ता अणुपुव्वेणं सारक्खेमाणा संगोवेमाणा संवड्डेमाणा विहरंति।
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