Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रोहिणी नामक सातवां अध्ययन - भविष्य-चिंता : परीक्षण का उपक्रम
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दाने लेकर उन्हें दे दूंगी। यों विचार कर उसने उन पाँच धान के दानों को एकांत में डाल दिया और वह अपने कार्य में संलग्न हो गई।
(८) ' एवं भोगवइयाए वि णवरं सा छोल्लेइ २ त्ता अणुगिलइ २ ता सकम्मसंजुत्ता जाया यावि होत्था। एवं रक्खिया वि णवरं गेण्हइ २ त्ता इमेयारूवे अज्झथिए०एवं खलु ममं ताओ इमस्स मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुमं णं पुत्ता! मम हत्थाओ जाव पडिणिज्जाएज्जासित्तिक? मम हत्थंसि पंच सालिअक्खए दलयइ, तं भवियव्वं एत्थ कारणेणं त्तिकटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता ते पंच सालिअक्खए सुद्धे वत्थे बंधइ २ त्ता रयणकरंडियाए पक्खिवेइ २ त्ता ऊसीसामूले ठावेइ २ त्ता तिसंझं पडिजागरमाणी २ विहरइ।
शब्दार्थ - छोल्लेइ - तुष रहित करती है, अणुगिलइ - निगल जाती है, 'पडिणिजाएज्जासि - वापस लौटा देना।
भावार्थ - दूसरी पुत्रवधू भोगवतिका को भी इसी प्रकार धान के पाँच दाने दिए। इस संदर्भ में विशेषता यह है कि उसने धान के तुष को अलग किया और उन को निगल गई। फिर • वह अपने काम में लग गई। इसी भाँति रक्षिका को भी धान के पाँच दाने दिए। यहाँ अंतर यह
है कि - रक्षिका ने उन्हें ग्रहण किया, उसके मन में ऐसा विचार उत्पन्न हुआ कि तात ने मुझे मित्रों, जातीयजनों तथा हम चारों पुत्रवधुओं के पीहर के लोगों के समक्ष बुलाकर जो यों कहा है कि पुत्रियों मेरे हाथ से इन दानों को लो और जब मैं कहूँ तब लौटा देना। इस प्रकार यों कहकर धान के पाँच दाने दिए। इसलिए इसमें कुछ न कुछ कारण. होना चाहिए। रक्षिका ने यों सोचकर उन धान के दानों को शुद्ध वस्त्र में बाँधा, रत्न मंजूषा में स्थापित किया और उस मंजूषा को अपने सिरहाने रखा। उसे वह प्रातः, मध्यान्ह और सायंकाल इन तीनों संध्याओं के समय उनकी सारसंभाल करती हुई रहने लगी।
(६) तए णं से धण्णे सत्थवाहे तस्सेव मित्त जाव चउत्थिं रोहिणीयं सुण्हं सद्दावेइ,
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