Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रोहिणी नामक सातवां अध्ययन - परिणाम
३२७
तुम्भं एयमढे पडिसुणेमि २ ता ते पंच सालिअक्खए गेण्हामि एगंतमवक्कमामि। तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु तायाणं कोट्ठागारंसि जाव सकम्मसंजुत्ता, तं णो खलु ताओ! ते चेव पंच सालिअक्खए एए णं अण्णे।
भावार्थ - तब उज्झिका ने धन्य सार्थवाह से कहा-तात! आपने पांच वर्ष पूर्व इन्हीं मित्रस्वजनों तथा हम चारों के पीहर के महानुभावों के समक्ष हमें ये दाने लेने की बात कही तथा इन्हें संरक्षित गोपित करने का संकेत दिया। मैंने आपका कथन स्वीकार किया। फिर मैं एकांत में गई। वहाँ मेरे मन में यह विचार. उत्पन्न हुआ-तात के (आपके) कोष्ठागार में बहुत से दाने हैं। जब मांगेंगे तब इनमें से लेकर दे दूंगी। मैंने वे दाने फेंक दिए और अपने कार्य में लग गई। तात! ये वे पांच शालिधान के दाने नहीं हैं, दूसरे हैं।
. (२०) तए णं से धण्णे उज्झियाए अंतिए एयमटुं सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे उज्झिइयं तस्स मित्तणाइ० चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स य पुरओ तस्स कुलघरस्स छारुज्झियं च छाणुज्झियं च कयवरुज्झियं च समु संपुच्छियं च सम्मज्जिअं च पाउवदाइं च ण्हाणोवदाइंच बाहिरपेसणकारिं ठवेइ।
शब्दार्थ - छारुज्झियं - राख फेंकना, छाणुज्झियं - गोबर फेंकना, कयवरुज्झियं - कचरा फेंकना, संपुच्छियं - घर के आंगन को पोंछना-पोता लगाना, पाउवदाई - पैर धोने के लिए पानी देना, बाहिरपेसणकारिं - घर के बाहरी कार्य करना।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह उज्झिका का यह अभिप्राय सुनकर बहुत ही क्रुद्ध हुआ। वह क्रोध से दहक उठा। उसने उन मित्रादि समस्तजनों तथा चारों पुत्रवधुओं के पीहर के लोगों के सामने उसे घर में से राख, गोबर, कचरा फेंकने के काम, पैर धोने एवं स्नान करने के लिए पानी देने के काम तथा घर के बाहरी कार्य करने वाली दासी के कार्यों का दायित्व सौंपा।
(२१) एवामेव समणाउसो! जो अम्हं णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा जाव पव्वइए पंच
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