Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रोहिणी नामक सातवां अध्ययन - भविष्य-चिंता : परीक्षण का उपक्रम
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आधार है। इसीलिए कहा गया है - 'न गृहं गृहमित्याहु, गृहिणी गृहमुच्यते' - अर्थात् घरधन-धान्य संपन्न भवन वास्तव में घर नहीं है। गृहिणी ही घर हैं क्योंकि संस्कारशील, सुयोग्य गृहिणी धन संपन्नता को सदुपयोग द्वारा उजागर कर सकती है। यदि परिवार निर्धन भी हो तो वह अपने व्यवहार-कौशल से घर की प्रतिष्ठा को कायम रख सकती है।
धन्य सार्थवाह तो सांसारिक व्यवहार में तपा-मंझा पुरुष था। वह इस तथ्य को जानता था। दूसरी विशेष बात यह हैं, अपनी पत्नी को, जो गृहस्वामिनी थी, परीक्षा के लिए नहीं चुना क्योंकि उसकी तरह वह भी प्रौढ़ा हो चुकी थी। घर का भावी दायित्व तो पुत्रों पर ही आने वाला था। इसलिए उसने पुत्र वधुओं को परीक्षणीय माना। चारों में क्या-क्या विशेषताएँ, योग्यताएँ हैं, यह जानकर उन्हें उत्तरदायित्व सौंपने का अन्तर्भाव, उस सार्थवाह का था।
नारी-सम्मान का भी यह एक सुंदर उदाहरण है। प्राचीन भारत में नारी का बहुत सम्मान था। वर्तमान की तरह वह उपेक्षिता नहीं थी। 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः' - अर्थात् जहाँ नारियों की प्रतिष्ठा है, वहाँ देवता रमण करते हैं। वह घर स्वर्ग तुल्य हो जाता है। प्राचीन भारत के इन आदर्शों से आज के युग को प्रेरणा लेनी चाहिए। आगमों के ये उदाहरण सामाजिक जीवन को निश्चय ही नया मोड़ दे सकते हैं।
एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव मित्तणाइ० चउण्हं सुण्हाणं कुलघरवग्गं आमंतेइ २ त्ता विपुलं असणं ४ उवक्खडावेड।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह ने ऐसा विचार कर प्रातःकाल होने पर यावत् मित्रों, पारिवारिकों तथा संबंधियों आदि को तथा चारों पुत्र वधुओं के पीहर के लोगों को आमंत्रित किया। विपुल मात्रा में अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य तैयार करवाए।
तओ पच्छा पहाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गेणं सद्धिं तं विपुलं असणं ४ जाव सक्कारेइ सम्माणेइ स० २ त्ता तस्सेव मित्तणाइ० चउण्ह य सुण्हाणं कुलघरवग्गस्स पुरओ पंच सालिअक्खए गेण्हइ २ ता जेट्ठा सुण्हा उज्झिइया तं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं .
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