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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(१२) तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं जाणं दुरूहंति २ ता . चंपाए णयरीए मझमज्झेणं जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे जेणेव णंदापोक्खरिणी तेणेव उवागच्छति २ त्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति २ त्ता गंदापोक्खरिणीं ओगाहेंति २ त्ता जलमजणं करेंति जलकीडं करेंति ण्हाया देवदत्ताए सद्धिं पच्चुत्तरंति जेणेव थूणामंडवे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता थूणामंडवं अणुप्पविसंति २ त्ता सव्वालंकार विभूसिया आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया देवदत्ताए सद्धिं तं । विपुलं असण ४ धुव-पुष्फ-गंध-वत्थं आसाएमाणा वीसाएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा एवं च णं विहरंति जिमिय-भुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा देवदत्ताए सद्धिं विपुलाई माणुस्सगाई कामभोगाई भुंजमाणा विहरंति।
भावार्थ - वे सार्थवाह पुत्र देवदत्ता गणिका के साथ यान पर आरूढ़ हुए। चम्पानगरी के बीचों-बीच होते हुए वे सुभूमिभाग उद्यान में नंदा पुष्करिणी पर आए। यान से नीचे उतरे। नंदा ने पुष्करिणी में प्रविष्ट होकर जल-मार्जन, जलक्रीड़ा एवं स्नान किया और देवदत्ता के साथ बाहर निकले। शामियाने में आए। सब प्रकार के अलंकारों से अपने को विभूषित किया। आश्वस्त-विश्वस्त होकर सुंदर आसन पर बैठे। उन्होंने देवदत्ता के साथ बहुविध अशन-पानखाद्य-स्वाद्य पदार्थों तथा धूप, पुष्प गंध, वस्त्र इनका आस्वादन किया, विशेष आनंद लिया। एवं परस्पर मनुहार पूर्वक परिभोग किया। भोजन आदि का आनंद लेने के अनंतर उन्होंने देवदत्ता के साथ बहुविध मनुष्य जीवन विषयक कामभोगों का सेवन किया।
(१३) तए णं ते सत्थवाहदारगा पुव्वावरण्हकाल-समयंसि देवदत्ताए गणियाए सद्धिं थूणामंडवाओ पडिणिक्खमंति २ त्ता हत्थसंगेल्लीए सुभूमिभागे बहुसु आलिघरएसु य कयलीघरेसु य लयाघरएसु य अच्छणघरएसु य पेच्छणघरएसु य पसाहणघरएसु य मोहणघरएसु य सालघरएसु य जालघरएसु य कुसुमघरएसु य उजाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति।
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