Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कूर्म नामक चतुर्थ अध्ययन - दो मांस-लोलुप श्रृगाल
२४६
भाग में ईशान कोण में गंगा महानदी के निकट मृत गंगातीर द्रह नामक बड़ी झील थी। उसके तट यथा क्रम बहुत ही सुंदर बने थे। वह बहुत गहरी थी। शीतल, स्वच्छ, निर्मल जल से भरी हुई थी। वह झील कमल आदि के पत्तों तथा फूलों आदि की पंखुड़ियों से ढकी थी। बहुत से सुंदर सुगंधित उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र एवं सहस्रपत्र संज्ञक कमलों के किंजल्क तथा अन्यान्य पुष्पों से समृद्ध थी, देखते ही मन को हर लेती थी।
तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सइयाण य साहस्सियाण य सयसाहस्सियाण य जूहाई णिन्भयाई णिरुव्विग्गाई सुहंसुहेणं अभिरममाणाई २ विहरंति। ..
शब्दार्थ - मच्छाण - मत्स्यों का, कच्छभाण - कच्छपाण-कछुओं का, गाहाण - घड़ियालों का, मगराण - मगरमच्छों का, सुंसुमार - सूंस नामक जल-जन्तुओं का, जूहाई - यूथ-समूह, णिरुव्विग्गाइं - निरुद्विग्न-उद्वेग रहित।
. भावार्थ - उस झील में सैकड़ों, हजारों लाखों मत्स्य, घड़ियाल, मगरमच्छ तथा राँस जाति के जलचर जीवों के समूह निर्भय, उद्वेग रहित एवं सुखपूर्वक विचरण करते थे।
दो मांस-लोलुप शृगाल
तस्स णं मयंगतीरद्दहस्स अदूरसामंते एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था वण्णओ। तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवसंति पावा चंडा रुद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रति वियालचारिणो दिया पच्छण्णं चावि चिट्ठति।
शब्दार्थ - पावसियालगा - पापी श्रृगाल, तल्लिच्छा - इष्ट वस्तु-मांस प्राप्त करने में तत्पर, साहसिया - दुस्साहसी, लोहियपाणी - रक्तरंजित अग्रपाद युक्त, आमिसत्थी - मांसा , आमिसाहारा - मांस भक्षी, आमिसप्पिया - मांसप्रिय, आमिसलोला - मांस लोलुप, रतिं - रात्रि, वियाल - विकाल-संध्या, पच्छण्णं - प्रच्छन्न-छिपे हुए।
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