Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - दीक्षाभिषेक
२७१
नागरिको! संसार में आवागमन-जन्म-मरण के भय से उद्विग्न-भीतियुक्त थावच्चापुत्र भगवान् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित, प्रव्रजित होना चाहता है।
देवानुप्रियो! राजा, युवराज, रानी, राजकुमार, राज्य सम्मानित प्रतिष्ठाप्राप्त पुरुष, जागीरदार, वैभव-संपन्न नागरिक, परिवार के मुखिया धनाढ्य जन, श्रेष्ठि, सेनापति, सार्थवाह-इनमें से कोई भी दीक्षार्थी थावच्चापुत्र का अनुगमन कर प्रव्रजित होते हों तो कृष्ण वासुदेव यह अनुज्ञापित करते हैं कि उनके पीछे रहे दुःखित संबंधीजनों के योगक्षेम का दायित्व वहन करेंगे, यह घोषणा कर सूचित करो, यावत् कृष्ण वासुदेव के आदेशानुसार वे सेवक घोषणा करते हैं।
दीक्षाभिषेक
(२२) - तए णं थावच्चापुत्तस्स अणुराएणं पुरिस-सहस्सं णिक्खमणाभिमुहं ण्हायं सव्वालंकार विभूसियं पत्तेयं २ पुरिस-सहस्स-वाहिणीसु सिवियासु दुरूढं समाणं मित्तणाइ-परिवुडं थावच्चापुत्तस्स अंतियं पाउन्भूयं। तए णं से कण्हे वासुदेवे पुरिससहस्सं अंतियं पाउब्भवमाणं पासइ, पासित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - जहा मेहस्स णिक्खमणाभिसेओ तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ जाव अरहओ अरि?णेमिस्स छत्ताइच्छत्तं पडागाइ-पडागं पासइ, पासित्ता विज्जाहर-चारणे जाव पासित्ता सिवियाओ पच्चोरुहइ। ___भावार्थ - थावच्चापुत्र के प्रति अनुराग के कारण, उसके वैराग्य से प्रभावित होकर एक हजार पुरुष निष्क्रमण-प्रव्रज्या के लिए तैयार हुए। उन्होंने स्नान किया। सब प्रकार के अलंकारों से वे विभूषित हुए। एक-एक हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली एक-एक पालखी पर आरूढ हुए। मित्रों स्वजातीयजनों, बन्धु-बांधवों से घिरे हुए, वे थावच्चापुत्र के पास आए।
वासुदेव कृष्ण ने एक हजार पुरुषों को आया हुआ देखा। उन्होंने सेवकों को बुलाया और उन्हें आज्ञा दी कि जिस प्रकार मेघकुमार का दीक्षाभिषेक हुआ उसी प्रकार इनका प्रव्रज्या समारोह आयोजित किया जाय। तदनुसार सेवकों ने चांदी सोने के सफेद पीले कलशों में भरे शुद्ध सुरभित जल द्वारा थावच्चापुत्र सहित उनको स्नान कराया। वस्त्र, अलंकार आदि से सज्जित किया।
वे सब अर्हत् अरिष्टनेमि के पास पहुंचे। उन्होंने वहाँ छत्रातिछत्र, पताकातिपताका युक्त विद्याधरों, चारणों तथा जृम्भक देवों को आते हुए जाते हुए देखा। वे पालखियों से नीचे उतरे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org