Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३०४
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
.. शब्दार्थ - खामणट्ठयाए - खामणा देने के लिए, अपत्थिय पत्थिय - अप्रार्थित प्रार्थक-बिना बुलाए आने वाला, वजिए - वर्जित।
भावार्थ - पंथक ने कार्तिकी चौमासी के दिन कायोत्सर्ग करके देवसिक प्रतिक्रमण किया और देवसिक प्रतिक्रमण करके, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण की इच्छा लिए शैलक राजर्षि को खामणा देने (उत्कृष्ट वंदना करने हेतु) हेतु अपने मस्तक से उनके चरणों को छुआ। पंथक द्वारा ऐसा किए जाने पर शैलक को तत्काल ही बहुत रोष हुआ और वह क्रोध से जलता हुआ उठा और बोला-यह बिना बुलाए आने वाला, श्री, ह्री, बुद्धि एवं कीर्ति रहित कौन पुरुष है? जो मुझ सोए हुए के पैरों को छू रहा है।
विनयशील पंथक
. (६७) तए णं से पंथए सेलएणं एवं वुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिए करयल जाव कटु एवं वयासी-अहं णं भंते! पंथए कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कते चाउम्मासियं पडिक्कंते चाउम्मासियं खामेमाणे देवाणुप्पियं वंदमाणे सीसेणं पाएसु संघट्टेमि! तं खामेमि णं तुब्भे देवाणुप्पिया! खमंतु मे अवराहं तुमं णं देवाणुप्पिया! णाइभुजो एवं करणयाए-त्ति कट्ट सेलयं अणगारं एयमहूँ सम्मं विणएणं भुजो भुजो खामेइ।
शब्दार्थ - भुजो - भूयः-फिर।
भावार्थ - शैलक द्वारा यों कहे जाने पर मुनि पंथक त्रस्त, भयभीत एवं खिन्न हुआ। उसने झुके हुए सिर पर अंजलिबद्ध हाथ रख कर कहा-'भगवन्! मैं पंथक हूँ। कायोत्सर्ग एवं देवसिक प्रतिक्रमण कर, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने की इच्छा लिए आपको खामणा देने (उत्कृष्ट वंदना करने हेतु) हेतु, आपके चरणों से मस्तक का स्पर्श किया। देवानुप्रिय! आप मेरा अपराध क्षमा करें। फिर ऐसा नहीं करूंगा।" यों कहकर पंथक शैलक अनगार से बार-बार क्षमायाचना करने लगा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org