Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ
उस काल, उस समय, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अंतेवासी, प्रधान शिष्य इंद्रभूति नामकं अनगार जो उनसे न अधिक दूर न अधिक निकट, यावत् उज्ज्वल धर्म - ध्यान में अवस्थित थे । उनके मन में श्रद्धापूर्वक यावत् उत्सुकतापूर्ण जिज्ञासा उत्पन्न हुई ।. उन्होंने भगवान् से निवेदन किया भगवन्! किस प्रकार जीव कर्मों से भारी होते हैं और किस प्रकार हलके होते हैं ?
३१०
-
-
विवेचन - यहाँ पर गौतम स्वामी के लिए जो 'सुक्कज्झाणोवगए' पाठ दिया गया है। वह लिपिकारों के प्रमाद के कारण 'झाणकोट्ठोवगए' पाठ के स्थान पर 'सुक्कज्झाणोवगए' ऐसा भूल से लिख दिया गया हो और आगे वह परम्परा में चल गया हो। क्योंकि भगव के प्रारम्भ में जहाँ इसका पूर्ण विस्तार से वर्णन है वहाँ पर 'झाणकोट्ठोवगए' पाठ ही मिलता है। इसी का यहाँ पर संक्षिप्तीकरण किया गया है। इसलिये शुक्ल ध्यान का पाठ होना उचित प्रतीत नहीं होता है । आगम के पाठों को देखते हुए शुक्ल ध्यान में आठवें से चौदहवें गुणस्थान तक सात गुणस्थान समझे जाते हैं। गौतम स्वामी उस समय श्रेणी में नहीं वर्त रहे थे। छठेसातवें गुणस्थान में विद्यमान थे ।
Jain Education International
भगवान् का उत्तर (४)
गोयमा! से जहाणामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कं तुंबं णिच्छिद्दं णिरुवहयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ २ त्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ २ त्ता उण्हे दलयइ २ त्ता सुक्कं समाणं दोच्वंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ २ त्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ २ त्ता उन्हे दलयइ २ त्ता सुक्कं समाणं तच्वंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ २ त्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ। एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा वेढेमाणे अंतरा लिंपमाणे अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं आलिंपइ २ त्ता अत्थाहमतारम-पोरिसिसि उद पक्खिवेजा। से णूणं गोयमा ! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं गुरुययाए भारिययाए गुरुयभारिययाए उप्पिं सलिल - मइवइत्ता अहे धरणियलपइट्ठाणे भवइ । एवामेव
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org