Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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(५)
अहण्णं गोयमा! से तुंबे तंसि पढमिल्लुगंसि मट्टियालेवंसि तिण्णंसि कुहियंसि परिसडियंसि ईसिं धरणियलाओ उप्पइत्ताणं चिट्टइ। तयाणंतरं च णं दोच्चंपि मट्टियालेवे जाव उप्पइत्ताणं चिट्ठइ। एवं खलु एएणं उवाएणं तेसु अट्ठसु मट्टियालेवेसु तिण्णेसु जाव विमुक्कबंधणे अहे धरणियलमइवइत्ता उप्पिं सलिलतल पइट्ठाणे भवइ।
शब्दार्थ - अह - उसके बाद, इल्लुगंसि - गीला होने पर, तिण्णंसि - गल जाने पर, कुहियंसि - गल कर बह जाने पर, परिसंडियंसि - परिशटित-नष्ट, बंधन रहित हो जाने पर, ईसिं - ईषद्-कुछ, अहे - अधः-नीचे।
भावार्थ - गौतम! वह तूंबा मिट्टी के प्रथम लेप के गीले हो जाने पर, गल जाने पर, गलकर गिर जाने पर, नष्ट हो जाने पर, जल के तल से-पैंदे से कुछ ऊँचा उठता है। इसके बाद दूसरे मृत्तिका लेप के गल जाने पर, यावत् नष्ट हो जाने पर वह और ऊँचा उठता है। इस प्रकार बाकी के आठों मृत्तिका लेपों के यावत् विमुक्त-बंधन हो जाने पर, नष्ट हो जाने पर, वह जल के अधःस्तन भूतल से ऊपर-जल-तल पर आ जाता है, स्थित हो जाता है। .
एवामेव गोयमा! जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पिं लोयग्गपइट्ठाणा भवंति। एवं खलु गोयमा! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति।
भावार्थ - गौतम! इसी प्रकार जीव प्राणातिपात, यावत् मिथ्यादर्शन शल्य के विरमण द्वारा-त्याग द्वारा आठ कर्म-प्रकृतियों का क्षय कर, ऊपर-लोकाग्र भाग में, सिद्ध स्थान में स्थित हो जाता है।
गौतम! इस प्रकार जीव शीघ्र ही हलकापन प्राप्त कर लेते हैं।
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