Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - राजा मण्डुक द्वारा चिकित्सा-व्यवस्था
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शैलक : रोग-ग्रस्त
. (५६) तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य णिच्चं पाणभोयणेहि य पयइसुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउन्भूया उजला जाव दुरहियासा कंडुयदाह पित्तजरपरिगयसरीरे यावि विहरइ। तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था। .. शब्दार्थ - रायरिसिस्स - राजर्षि का, अंतेहि - अतिसाधारण, पंतेहि - बचा-खुचा, तुच्छेहि - निस्सार, लूहेहि - रूखा-सूखा, अरसेहि - रस शून्य, विरसेहि - स्वाद रहित, सीएहि - ठण्डा, उण्हेहि - गर्म, कालाइक्कंतेहि - कालातिक्रांत-भूख का समय चले जाने पर, पमाणाइक्कंतेहि - परिमाण के प्रतिकूल-कम-ज्यादा, पाणभोयणेहि - खान-पान से, पयइसुकुमालस्स - प्रकृति से सुकोमल, सुहोचियस्स - सुखोचित-सुखापेक्षी, उजला - . तीव्र-उत्कट, दुरहियासा - दुस्सह, कंडुय - खुजली, दाह - जलन, सुक्के-शुष्क, भुक्खेरोगों द्वारा भुक्त। - भावार्थ - राजर्षि शैलक के प्रकृति सुकुमारता एवं सुखाभ्यस्तता के कारण अति सामान्य, बचे-खुचे, निःस्सार; नीरस, स्वाद रहित ठण्डे गर्म समय-बेसमय, कम-ज्यादा खान-पान से शरीर में तीव्र वेदना उत्पन्न हुई, यावत् वह बड़ी असह्य थी। उनके शरीर में खुजली, जलन एवं पित्तज्वर हो गया। इस रुग्णता के कारण उसका शरीर शुष्क हो गया, भुक्त-दुर्बल और निस्तेज हो गया। राजा मण्डुक द्वारा चिकित्सा-व्यवस्था
(६०) . . तए णं से सेलए अण्णया कयाई पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरइ। परिसा णिग्गया मंडुओऽवि णिग्गओ सेलगं अणगारं
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