Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ - फिर शैलक ने राजा मण्डुक से पूछा - दीक्षा लेने की अनुमति ली। राजा मण्डुक ने सेवकों को बुलाया और कहा-शीघ्र ही शैलकपुर नगर में पानी से छिड़काव कराओ, यावत् सुगंधित पदार्थों द्वारा उसे सुरभिमय बनाओ। मेरी आज्ञानुरूप यह सब कर मुझे सूचित करो। उन्होंने वैसा ही किया।
तब राजा मंडुक ने पुनः कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - शीघ्र ही राजा शैलक के विशाल निष्क्रमणाभिषेक की तैयारी करो। जैसा मेघकुमार का दीक्षा समारोह हुआ, वैसा ही शैलक का हुआ। अन्तर यह है कि रानी पद्मावती ने उसके अग्रकेश ग्रहण किए। फिर वे सभी प्रतिग्रह-श्रमणोचित उपकरण लेकर शिविकाओं पर आरूढ हुए। शेष वर्णन पूर्वानुरूप है, यावत् उन्होंने सामायिक से प्रारंभ कर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, यावत् उपवास आदि अनेक प्रकार के तप करते हुए श्रमण जीवन का पालन करते रहे। . .
अनगार शुक की मुक्ति
(५८) ... तए णं से सुए सेलगस्स अणगारस्स ताई पंथगपामोक्खाइं पंच अणगारसयाई
सीसत्ताए वियरइ। तए णं से सुए अण्णया कयाइं सेलगपुराओ णगराओ सुभूमिभागाओ उजाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ। तए णं से सुए अणगारे अण्णया कयाइं तेण अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिबुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं विहरमाणे जेणेव पुंडरीय पव्वए जाव सिद्धे। - भावार्थ - तदनंतर मुनि शुक ने शैलक अनगार को पंथक आदि पांच सौ शिष्य प्रदान किए। फिर मुनि शुक ने किसी एक समय शैलकपुर नगर के सुभूमिभाग उद्यान से प्रस्थान किया और अनेक प्रदेशों में विचरणशील रहे। ___ तदनंतर शुक अनगार एक हजार साधुओं सहित ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए पुण्डरीक पर्वत पर आए यावत् संलेखना पूर्वक अनशन कर मुक्त, सिद्ध हुए।
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