Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - सुदर्शन को प्रतिबोध
२८१
सोही। सुदंसणा! से जहाणामए केइ पुरिसे एगं महं रुहिरकयं वत्थं सजियाखारेणं अणुलिंपइ २ ता पयणं आरुहेइ २ त्ता उण्हं गाहेइ २ त्ता तओ पच्छा सुद्धेण वारिणा धोवेजा से णूणं सुदंसणा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स सज्जियाखारेणं अणुलित्तस्स पयणं आरुहियस्स उण्हं गाहियस्स सुद्धणं वारिणा पक्खालिजमाणस्स सोही भवइ? हंता भवइ। एवामेव सुदंसणा! अम्हंपि पाणाइवाय वेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्ल वेरमणेणं अत्थि सोही जहा वि तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स जाव सुद्धेणं वारिणा पक्खालिजमाणस्स अस्थि सोही। ___ शब्दार्थ-सज्जियाखारेणं - साजी के खार के पानी द्वारा, पयणं - चूल्हा, उण्हं गाहेइऊबाले। . भावार्थ - सुदर्शन! जिस तरह रुधिर से लिप्त वस्त्र को यदि रुधिर से धोया जाए तो उसकी शुद्धि नहीं होती। उसी प्रकार प्राणातिपात, यावत् मिथ्यादर्शन शल्य द्वारा भी तुम्हारी शुद्धि नहीं होगी।
सुदर्शन! जैसे कोई पुरुष एक बड़े खून से लिप्त वस्त्र को साजी के खार के जल में भिगोए फिर उसको चूल्हे पर चढ़ाकर गर्म करे, उसके बाद उसे शुद्ध जल से धोए तो सुदर्शन! वैसा करने से वह खून से लिप्त वस्त्र शुद्ध हो जाता है। ___सुदर्शन! इसी प्रकार हमारी प्राणातिपात विरमण, यावत् मिथ्या दर्शनशल्य विरमण मूलक धर्म से शुद्धि हो जाती है। जैसे उस रुधिर लिप्त वस्त्र की, यावत् उक्त रूप में शुद्ध जल से प्रक्षालित करने पर शुद्धि होती है।
(३६) . तत्थ णं से सुदंसणे संबुद्धे थावच्चापुत्तं वंदइ णमंसइ, वं० २ त्ता एवं वयासीइच्छामि णं भंते! धम्म सोच्चा जाणित्तए जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ। .. शब्दार्थ - संबुद्धे - संबोध प्राप्त हुआ।
भावार्थ - सुदर्शन को संबोध प्राप्त हुआ। उसने अनगार थावच्चापुत्र को वंदन, नमस्कार किया और कहा-भगवन्! मैं धर्म-श्रवण कर, समझना चाहता हूँ, अंगीकार करना चाहता हूँ,
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