Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवया ते तिविहा पण्णत्ता तंजहा-सहजायया सहवड्डियया सहपंसुकीलियया ते णं समणाणं णिग्गंथाणं अभक्खेया, तत्थ णं जे ते धण्णसरिसवया ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य। तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया ते समणाणं णिग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते सत्थ- परिणया ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा-फासुया य अफासुया य। अफासुया णं सुया! णो भक्खेया। तत्थ णं जे ते फासुया ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा - जाइया य अजाइया य, तत्थ णं जे ते अज़ाइया ते अभक्खेया। तत्थ णं जे ते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं अभक्खेया तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा-लद्धा य अलद्धा य। तत्थ णं जे ते अलद्धा ते अभक्खेया। तत्थ णं जे ते लद्धा ते णिग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अटेणं सुया! एवं वुच्चइ-सरिसवया भक्खेयावि अभक्खेयावि।। ___ शब्दार्थ - सरिसवया - सदृश-वय-समान उम्र के मित्र तथा सर्षपक - सरसों, भक्खेयाभक्ष्य-खाने योग्य, अभक्खेया - अभक्ष्य-न खाने योग्य, वुच्चइ - कहा जाता है, सत्थपरिणयाशस्त्र परिणत-अचित्त करने हेतु अग्नि आदि द्वारा संयोजित, जाइया - याचित, एसणिजा - एषणीय (कल्पनीय)।
भावार्थ - शुक - भगवन्! 'सरिसवय' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं? थावच्चापुत्र - शुक! सरिसवय भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं।
शुक - भगवन्! सरिसवयों के संबंध में भक्ष्य और अभक्ष्य दोनों प्रकार से आप कैसे कहते हैं?
___थावच्चापुत्र - शुक! सरिसवयों के दो प्रकार-द्विविध अर्थ युक्त हैं। जैसे उनका एक अर्थ सदृशवय-समान आयु वाले मित्र आदि हैं, दूसरा अर्थ सर्षपक-सरसों धान्य है। उनमें जो मित्रार्थक सरिसवय हैं, वे तीन प्रकार के बतलाए गए हैं - १. सहजात-साथ जन्मे हुए २. सहवर्धित - एक साथ बढ़े हुए ३. सह पांसुकक्रीड़ित - एक साथ धूल में खेले हुए। ये श्रमण निर्ग्रन्थों की दृष्टि में अभक्ष्य हैं।
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