Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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____ शब्दार्थ - हेऊहिं - हेतु, पसिणाई - प्रश्न, वागरणाई - व्याकरण-विश्लेषण, णिप्प?निरुत्तर।
भावार्थ - तब शुक परिव्राजक ने सुदर्शन से इस प्रकार कहा - सुदर्शन! हम तुम्हारे धर्माचार्य थावच्चापुत्र के पास चलें। मैं इन अर्थों, विवेच्य विषयों को हेतु, प्रश्न, कारण एवं विश्लेषण पूर्वक पूलूंगा। यदि वे इन अर्थों का यावत् विश्लेषण कर पायेंगे तो मैं उन्हें वंदन, नमन करूंगा। यदि वे इन अर्थों का यावत् विश्लेषण न कर पायेंगे तो मैं हेतुओं द्वारा इनका विवेचन करता हुआ, उन्हें निरुत्तर कर दूंगा।
- विवेचन - इस सूत्र में आए हुए हेतु, प्रश्न, कारण एवं व्याकरण शब्द विषय के युक्तियुक्त तर्क सम्मत विवेचन से संबद्ध हैं।
न्यायशास्त्र में अनुमान की स्थापना में प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय तथा निगमन-ये पांच अवयव माने गए हैं। प्रतिज्ञा का अभिप्राय अनुमेय पदार्थ के स्वरूप को सामान्य रूप में परिज्ञापित करना है। जैसे कोई व्यक्ति पर्वत से धुआँ निकलते हुए देखता है। उसे देखकर, 'पर्वतोऽयं वह्निमान्'-यह पर्वत अग्नियुक्त है-इस प्रकार प्रतिज्ञापित-अनुमेय पदार्थ को अभिव्यक्त करता है। अपने कथन को सिद्ध करने के लिए वह कहता है कि पर्वत इसलिए अग्निमान है क्योंकि उसमें से धुआँ निकल रहा है। पर्वत के धूमवान होने का कथन हेतु' है। दूसरे शब्दों में, कही हुई बात को, तत्साधक लिङ्ग-चिह्न द्वारा सिद्ध करने का कथनोपक्रम, न्यायशास्त्र में 'हेतु' शब्द से अभिहित हुआ है।
यहाँ प्रयुक्त 'प्रश्न' शब्द व्याख्यात विषय को अधिक स्पष्ट करने हेतु की जाने वाली जिज्ञासा से संबद्ध है। उस जिज्ञासा का जब पुनः समाधान किया जाता है तो विषय और अधिक स्पष्ट हो जाता है।
न्यायशास्त्र के अनुसार जो कार्य से पूर्व नियत या निश्चित रूप में रहता है, उसे 'कारण' कहा जाता है। जैसे घट रूप कार्य का मृत्तिका कारण है। क्योंकि घट का निर्माण होने से पूर्व मृत्तिका की अनिवार्यता अपेक्षित होती है।
यद्यपि 'व्याकरण' शब्द आज भाषा के शुद्ध पठन, लेखन, भाषण विषयक शास्त्र आदि से संबद्ध है किंतु इसका मूल अर्थ विशिष्ट विवेचन या विश्लेषण है। वि+आ+करण-इन तीनों के मेल से व्याकरण शब्द बना है। 'वि' उपसर्ग का अर्थ विशेष रूप से तथा 'आ' उपसर्ग का अर्थ व्यापक रूप से है। “विशेषेण समन्तात व्याक्रियते विषयोयेन तद् व्याकरणम्" -
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