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शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - थावच्चा पुत्र-सुदर्शन संवाद
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एवं वुत्ते समाणे सुदंसणं एवं वयासी - सुदंसणा! विणयमूले धम्मे पण्णत्ते। से विय विणए दुविहे पण्णत्ते तंजहा - अगारविणए य अणगार विणए य। तत्थ णं जे से अगारविणए से णं पंच अणुव्वयाइं सत्त सिक्खावयाई एक्कारस उवासगपडिमाओ। तत्थ णं जे से अणगार विणए से णं पंच महव्वयाइं तंजहासव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं जाव मिच्छादसणसल्लाओ वेरमणं दसविहे पच्चक्खाणे बारस भिक्खपडिमाओ इच्चेएणं दुविहेणं विणयमूलएणं धम्मेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ खवेत्ता लोयग्गपइट्टाणे भवंति।
शब्दार्थ - विणयमूले - विनयमूल-चारित्र प्रधान, अगारविणए - गृहस्थ-सापवाद का चारित्र मूलक धर्म, अणगार विणए - साधु का निरपवाद चारित्र मूलक धर्म, खवेत्ता - क्षय कर, लोयग्गपइट्ठाणे - लोकाग्र प्रतिष्ठान-मोक्ष पद प्राप्ति। - भावार्थ - जन समूह तथा सुदर्शन थावच्चापुत्र के पास धर्म सुनने आए। उन्होंने अनगार थावच्चापुत्र को आदक्षिण-प्रदक्षिणापूर्वक वंदन, नमन किया और बोले - आपके धर्म का मूल आधार क्या बतलाया गया है? सुदर्शन द्वारा यों पूछे जाने पर थावच्चापुत्र ने कहा - सुदर्शन! हमारे धर्म का मूल विनय-चारित्र बतलाया गया है। विनय दो प्रकार का है - अगार विनय तथा अनगार विनय। अगार विनय में पाँच अणुव्रत, सात शिक्षाव्रत तथा ग्यारह श्रावक प्रतिमाओं का समावेश है। अनगार विनय में पाँच महाव्रत कहे गए हैं, जो सब प्रकार के प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन तथा परिग्रह, रात्रि भोजन यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से विरमण रूप हैं। उसके अन्तर्गत दस प्रकार के प्रत्याख्यान एवं बारह की भिक्षु-प्रतिमाएँ भी हैं। इस प्रकार दो प्रकार के विनयमूलक धर्म की आराधना से क्रमशः आठ कर्म प्रकृतियों का क्षय कर जीव मोक्ष प्राप्त करता है।
विवेचन - उपर्युक्त वर्णन में अगार विनय के भेद करते हुए पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत इन बारह व्रतों का वर्णन किया गया है। सभी तीर्थंकरों के शासन में श्रावक के व्रत तो बारह ही होते हैं। साधु के चतुर्याम पंचयाम धर्म की तरह श्रावक के व्रतों में परिवर्तन नहीं
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