Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - सुणिव्वुया - निश्चिंत।
भावार्थ - कृष्ण वासुदेव ने थावच्चा से कहा - देवानुप्रिये! तुम निश्चिंत और विश्वस्त रहो। मैं स्वयं ही तुम्हारे पुत्र का दीक्षा सत्कार-समारोह आयोजित करूँगा।
वैराग्य की परीक्षा
(१७) तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणीए सेणाए विजयं हत्थिरयणं दुरूढे समाणे जेणेव थावच्चाए गाहावइणीए भवणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता. थावच्चापुत्तं एवं वयासी-मा णं तुमे देवाणुप्पिया! मुंडे भवित्ता पव्वयाहि, भुंजाहि णं देवाणुप्पिया! विउले माणुस्सए कामभोगे मम बाहुच्छाया-परिग्गहिए केवलं देवाणुप्पियस्स अहं णो संचाएमि वाउकायं उवरिमेणं गच्छमाणं णिवारित्तए, अण्णे णं देवाणुप्पियस्स जं किंचि वि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाएइ तं सव्वं णिवारेमि।
शब्दार्थ - उवरिमेणं - ऊपर से।
भावार्थ - तब कृष्ण वासुदेव विजय हस्तिरत्न पर आरूढ़ होकर अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ थावच्चा के भवन में आए। उसके पुत्र से बोले-देवानुप्रिय! तुम मुण्डित प्रव्रजित मत बनो। तुम मेरी भुजाओं की छत्रछाया । में रहते हुए, मनुष्य जीवन विषयक विपुल काम-भोगों का सेवन करो। देवानुप्रिय! मैं तुम्हारे ऊपर से गुजरने वाली हवा को तो नहीं रोक सकता किन्तु अन्य सभी प्रकार की बाधाओं, पीड़ाओं, प्रतिकूलताओं का निवारण करता रहूँगा। थावच्चापुत्र का विवेक पूर्ण कथन
(१८) तए णं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-जइ णं तुमं देवाणुप्पिया! मम जीवियंतकरणं मच्छं एजमाणं णिवारेसि जरं वा सरीर रूव विणासिणिं सरीरं अइवयमाणिं णिवारेसि तए णं अहं तव बाहुच्छाया परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि।
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