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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
उव्वत्तेति जाव णो चेव णं संचाएंति करेत्तए ताहे संता तंता परितंता णिव्विण्णा समाणा. सणियं २ पच्चोसक्केंति एगंतमवक्कमंति २ त्ता णिच्चला णिप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति।। ___ शब्दार्थ - उव्वत्तेंति - उद्वर्तित-ऊपर करते हैं, परियत्तेंति - परिवर्तित-स्थानांतरित करते हैं, आसारेंति - सरकाते हैं, संसारेंति - हटाते हैं, चालेंति - इधर-उधर पटकते हैं, घटेंति - पंजों से छूते हैं, णहेहिं - नाखूनों से, आलुंपंति - कुरेदते हैं, अक्खोडेंति - दाँतों से विदारित करते हैं, चीरते हैं, संचाएंति - समर्थ होते हैं, आबाहं - थोड़ी पीड़ा, पबाहं - अधिक पीड़ा, वाबाहं - विशेष बाधा, उपाएत्तए - उत्पन्न करने में, छविच्छेयं - चमड़ी उधेड़ने में या अंग भंग करने में, संता - श्रांत, तंता - मानसिक ग्लानि युक्त, परितंता - सर्वथा खेद युक्त, णिविण्णा - निर्विन-उदासीन, पच्चोसक्केंति - पीछे लौटते हैं।
भावार्थ - वे पापी सियार, जहाँ कछुए थे, वहाँ आए। उन्होंने कछुओं को सब ओर से उलट-पुलट किया, स्थानांतरित किया। इधर-उधर सरकाया हटाया, छुआ, हिलाया, क्षुब्ध किया, नाखूनों से कुरेदा, दाँतों से विदारित किया किंतु उन कछुओं के शरीर में वे जरा भी बाधा और पीड़ा उत्पन्न नहीं कर सके, उनकी चमड़ी को नहीं उधेड़ सके अथवा अंग-भंग नहीं कर सके।
फिर उन पापी सियारों ने कछुओं को दो बार तीन बार इधर उधर उलट-पुलट किया, यावत् वे उन्हें पीड़ा पहुँचाने में समर्थ नहीं हो सके। इससे वे श्रांत, ग्लान, खिन्न और उदासीन होकर एकांत स्थान में चले गए। वहाँ निश्चल, निस्पंद होकर चुपचाप बैठ गए।
अस्थिर कूर्म का सर्वनाश
तत्थ णं एगे कुम्मगे ते पावसियालए चिरंगए दूरंगए जाणित्ता सणियं सणियं एगं पायं णिच्छुभइ। तए णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं सणियं सणियं एगं पायं णीणियं पासंति २ त्ता ताए उक्किट्ठाए गईए सिग्धं चवलं तुरियं चंडं जइणं वेगियं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तस्स णं कुम्मगस्स तं
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