Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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पव्वइए समाणे पंच य से इंदिया अगुत्ता भवंति से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं ४ हीलणिजे परलोए वि य णं आगच्छइ बहूणं दंडणाणं जाव अणुपरियदृइ जहा से कुम्मए अगुतिंदिए।
शब्दार्थ - अगुत्ता - अगुप्त-विषय सेवन हेतु बहिःप्रवृत्त।।
भावार्थ - इसी प्रकार हे आयुष्मान् श्रमणो! आचार्य अथवा उपाध्याय के पास प्रव्रजित जो साधु-साध्वी पाँचों इन्द्रियों को अगुप्त रखते हैं-बाहर या विषयों में प्रवृत्त करते हैं, वे इस भव में बहुत से श्रमण-श्रमणी तथा श्रावक-श्राविका द्वारा अवहेलना योग्य होते हैं। जिस प्रकार वह अगुप्तेन्द्रिय कछुआ कष्ट को प्राप्त हुआ उसी प्रकार वे परलोक में बहुत प्रकार के दण्ड कष्ट पाते हैं, यावत् अनन्त संसार में बारबार भटकते हैं।
जागरूक कछुआ
.. (११) . तए णं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चे कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं कुम्मगं सव्वओ समंता उव्वत्तेति जाव दंतेहिं अक्खुडेंति जाव करित्तए। तए णं ते पावसियालगा दोच्चंपि तच्चंपि जाव णो संचाएंति तस्स कुम्मगस्स किंचि आबाहं वा पबाहं वा वाबाहं वा उप्पायत्तए छविच्छेयं वा करित्तए। तए णं ते पावसियालगा एए कुम्मए दोच्चं पि तच्चपि सव्वओ समंता उव्वत्तेंति, जाव णो चेव णं संचायंति करित्तए ताहे संता तंता परितंता णिव्विण्णा समाणा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। ____ भावार्थ - तदनंतर वे नीच सियार, जहाँ दूसरा कछुआ था, वहाँ आए। उसकों चारों ओर : से उलट-पुलट कर देखा, यावत् वे उसको दांतों से विदीर्ण नहीं कर सके। __उन सियारों ने दो-तीन बार वैसा ही दुष्प्रयास किया किंतु उस कछुए को जरा भी बाधा, पीड़ा नहीं पहुंचा सके तथा न ही उसका अंग-भंग ही कर सके। अंततः वे श्रांत, खिन्न एवं उदास होकर जिधर से आए थे, उधर ही चले गए।
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