Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - मेघोघ- रसियं - मेघौघ - रसित - बहुत से मेघों की गर्जन ध्वनि, भेरी - चमड़े सेडा हुआ वितत जाति का वाद्य विशेष, तालेह - बजाओ ।
भावार्थ - कृष्ण वासुदेव को यह वृत्तांत ज्ञात हुआ तो उन्होंने सेवकों को बुलाया, कहाशीघ्र ही सुधर्मा सभा में जाओ और मेघ समूह की गर्जना तुल्य गंभीर तथा मधुर ध्वनि करने वाली कौमुदी नामक भेरी को बजाओ ।
कृष्ण वासुदेव द्वारा यों कहे जाने पर कौटुंबिक पुरुष बहुत ही हर्षित और प्रसन्न हुए । उन्होंने मस्तक पर अंजलि कर कहा - स्वामी! जैसी आपकी आज्ञा । ऐसा निवेदन कर वे कृष्ण वासुदेव के पास से रवाना हुए। सुधर्मा सभा ( न्यायालय) में कौमुदी भेरी के निकट आए और पूर्वोक्त गंभीर, मधुर शब्द युक्त भेरी को बजाया ।
(ह)
तओ णिद्ध-महुर-गंभीर-पडिसुएणं पिव सारइएणं बलाहएणं अणुरसियं भेरीए। शब्दार्थ - सारइए - शारदीय - शरदऋतु के, बलाहए - बादल, अणुरसियं - मेघानुरूपमेघ सदृश ध्वनि की ।
भावार्थ बजाए जाने पर भेरी ने स्निग्ध, मधुर, गंभीर, प्रतिध्वनि युक्त, शारदीय (शरदऋतु के) मेघ के सदृश शब्द किया ।
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(१०)
तए णं तीसे कोमुइयाए भेरीया तालियाए समाणीए बारवईए णयरीए णवजोयण - वित्थिण्णाए दुवालस-जोयणायामाए सिंघाडग-तिय-च - चउक्कचच्चर-कंदर-दरी विवर-कुहर-1 र - गिरि - सिहर - नगर - गोउर- पासाय- दुवार - भवणदेउल - पडिस्सुया-सयसहस्स - संकुलं सद्दं करेमाणे बारवईए णयरीए सब्भिंतरबाहिरियं सव्वओ समंता से सद्दे विप्पसरित्था ।
शब्दार्थ - कुहर - गर्त्त, गोउर - गोपुर नगर का मुख्य द्वार, पडिस्सुया प्रतिश्रुताप्रतिध्वनि, विप्पसरित्था - विप्रसारित - विशेष रूप से फैला हुआ ।
भावार्थ - कौमुदी नामक भेरी के बजाए जाने पर नौ योजन विस्तीर्ण तथा द्वादश योजन आयाम युक्त द्वारका नगरी के तिराहे, चौराहे, चौक, कंदरा, गुफा, विवर, गर्त्त, पर्वत शिखर,
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