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अंडक नामक तीसरा अध्ययन - संशय का दुष्परिणाम
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अपने अण्डों का हवा से बचाव करेगी, बाह्य उपद्रवों से रक्षा करेगी। परिणाम स्वरूप हमें दो क्रीड़ाकारक मोर के बच्चे प्राप्त होंगे। इस प्रकार दोनों को वैसा करना संगत प्रतीत हुआ और उन्होंने अपने-अपने दासपुत्रों को बुलाया और कहा-तुम इन अण्डों को लेकर उच्च जातीय मुर्गियों के अण्डों में रख दो, यावत् उन दास पुत्रों ने वैसा ही किया।
(१७) तए णं ते सत्थवाहदारगा देवदत्ताए गणियाए सद्धिं सुभूमिभागस्स उजाणस्स उजाणसिरिं पच्चणुब्भवमाणा विहरित्ता तमेव जाणं दुरूढा समाणा जेणेव चंपा णयरी जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता देवदत्ताए गिहं अणुप्पविसंति २ त्ता देवदत्ताए गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति २ त्ता सक्कारेंति सम्माणेति स० २ त्ता देवदत्ताए गिहाओ पडिणिक्खमंति २ त्ता जेणेव सयाई २ गिहाई तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था। . भावार्थ - वे सार्थवाह पुत्र देवदत्ता गणिका के साथ सुभूमिभाग उद्यान में तद्गत प्राकृतिक सुषमा का कुछ समय आनंद लेते रहे। तत्पश्चात् वे अपने रथ पर आरूढ हुए और चंपा नगरी में देवदत्ता गणिका के घर आए। देवदत्ता को प्रसन्नता पूर्वक जीवनोपयोगी विपुल उपहार दिया। उसका आदर-सत्कार किया। वे देवदत्ता के यहाँ से प्रस्थान कर अपने-अपने घरों में आए तथा स्वकार्यों में संलग्न हो गए।
संशय का दुष्परिणाम
(१८) _तए णं जे से सागरदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए से णं कल्लं जाव जलंते जेणेव से वणमऊरी अंड तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तंसि मऊरी अंडयंसि संकिए कंखिए वितिगिच्छ-समावण्णे भेय-समावण्णे कलुससमावण्णे किण्णं ममं एत्थ कीलावणए मऊरीपोयए भविस्सइ. उदाहु णो भविस्सइ-त्तिकटु तं मऊरी अंडयं अभिक्खणं २ उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ संसारेइ चालेइ फंदेइ घट्टेइ खोभेइ
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