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अंडे णामं तच्वं अज्झयणं अंडक नामक तीसरा अध्ययन
जम्बूस्वामी का प्रश्न (१)
जड़ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं दोच्चस्स अज्झयणस्स णायाधम्मकहाणं अयमट्ठे पण्णत्ते तइअस्स अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते ?
भावार्थ आर्य जंबू ने आर्य सुधर्मा स्वामी से निवेदन किया- भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ज्ञाताधर्मकथा के दूसरे अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है इस प्रकार व्याख्यात किया है तो कृपया बतलाएँ, उन्होंने तृतीय अध्ययन का क्या अर्थ निरूपित किया ?
आयु सुधर्मा द्वारा उत्तर
(२)
. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था वण्णओ । तीसे णं चंपाए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए सुभूमिभाए णामं उज्जाणे होत्था सव्वोउयपुप्फफल समिद्धे सुरम्मे णंदणवणे इव सुहसुरभि - सीयल-च्छायाए समणुबद्धे ।
समणुबद्धे - समनुबद्ध-व्याप्त ।
शब्दार्थ भावार्थ धर्माब जंबू ! उस काल, उस समय चंपा नामक नगरी थी। (उसका वर्णन औपपातिक सूत्र से ग्राह्य है ।) चंपानगरी के बाहर, उत्तर-पूर्व दिशा भाग में, ईशान कोण में, सुभूमिभाग नामक एक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं में फूलने-फलने वाले पुष्पों और फलों से समृद्ध तथा सुरम्य था । वह नंदनवन की तरह सुखप्रद सुरभिमय तथा शीतल छाया युक्त था ।
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