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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
गणिका देवदत्ता
तत्थ णं चंपाए णयरीए देवदत्ता णामं गणिया परिवसइ अड्डा जाव भत्तपाणा चउसट्ठि-कलापंडिया चउसहि-गणिया-गुणोववेया अउणत्तीसं विसेसे रममाणी एक्कवीस-रइगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयार-कुसला णवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारस-देसीभासाविसारया सिंगारागार चारुवेसा संगय-गय-हसिय जाव. ऊसियज्झया सहस्सलंभा विदिण्णछत्तचामर बालवीयणिया कण्णीरहप्पयाया यावि होत्था बहूणं गणिया सहस्साणं आहेवच्चं जाव विहरइ। .
शब्दार्थ - गणिया - गणिका, अड्डा - आद्य-वैभव संपन्न, गणियागुणोववेया - गणिका गुणोपपेता-गणिका के गुणों से युक्त, विसारया - निपुण, अउणत्तीसं - उनतीस, रममाणी - रमणशील, एक्कवीस - इक्कीस, रइगुणप्पहाणा - रतिगुणप्रधाना-काम-क्रीड़ा के गुणों में निष्णात, पुरिसोवयारकुसला - कामशास्त्रोक्त पुरुषोपचार-पुरुषों को प्रसन्न करने के गुणों में दक्ष, णवंग - नवांग-दो कान, दो आँखें, दो नासिका विवर, जिह्वा, त्वचा तथा मन, सुत्त-सुप्त-सोए हुए, पडिबोहिया - प्रतिबोधिका-जागृत करने वाली, संगय - समुचित, गयगति, हसिय- हसित-हासोपहास, ऊसिय - उच्छित-ऊपर उठी हुई, झया - ध्वजा, सहस्सलंभा- सहस्रलंभा-हजार मुद्राओं से प्राप्य, विदिण्ण - वितीर्ण-राजप्रदत्त, कण्णीरह - कर्णीरथ-पुरुषों द्वारा कन्धों पर (कानों तक) वहन की जाने वाली पालखी, पयाया - प्रयाताचलने वाली, आहेवच्चं - आधिपत्य।
भावार्थ - चंपा नगरी में देवदत्ता नामक अत्यंत समृद्धशालिनी गणिका निवास करती थी। वह चौसठ कलाओं में प्रवीण थी। गणिकोचित्त चौसठ गुणों से युक्त थी। उनतीस प्रकार के रमण विशेष, इक्कीस प्रकार की काम क्रीड़ाएँ, बत्तीस प्रकार के पुरुषोपचार में निपुण थी। पुरुषों के सुषुप्त नवांगों को जागृत करने में समर्थ, अठारह देशी भाषाओं में विशारद, श्रृंगार की साक्षात् प्रतिमा तथा सुंदर वेशयुक्त थी। उसकी गति, हँसी आदि में संगति-शोभनता थी। उसकी ध्वजा फहराती थी - वह चारों ओर विख्यात थी। हजार मुद्राओं से वह प्राप्य थी। राजा द्वारा उसे छत्र, चंवरी-गाय के बालों से बने विशेष चँवर प्रदत्त किए गए थे। वह पुरुषों द्वारा कंधों पर
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