Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(३८) तए णं से धण्णे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्ठइ. तए णं से धण्णे सत्थवाहे मुहत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चारपासवणेणं उव्वाहिज्जमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी-एहि ताव विजया! जाव अवक्कमामो। तए णं से विजय धण्णं सत्थवाहं एवं वयासी-जइ णं तुमं देवाणुप्पिया! ताओ विपुलाओ असणाओ ४ संविभागं करेहि तओऽहं तुमेहिं सद्धिं एगंतं अवक्कमामि।
शब्दार्थ - बलियतरागं - बलियतर-अति तीव्र।
भावार्थ - विजय चोर द्वारा यों कहे जाने पर धन्य सार्थवाह चुप हो गया। कुछ देर बाद उसके मल-मूत्र त्याग की तीव्र शंका उत्पन्न हुई तब उसने विजय चोर से कहा-आओ एकान्त स्थान में चलें।
__ विजय चोर सार्थवाह से बोला-'देवानुप्रिय! यदि तुम विपुल अशन, पान आदि में से मुझे हिस्सा दो तो मैं तुम्हारे साथ एकांत स्थान में चलूँ।'
(३६) तए णं से धण्णे सत्थवाहे विजयं एवं वयासी-अहं णं तुम्भं ताओ विपुलाओ असणाओ ४ संविभागं करिस्सामि। तए णं से विजय धण्णस्स सत्थवाहस्स एयमढें पडिसुणेइ। तए णं से विजय धण्णेणं सद्धिं एगते अवक्कमइ उच्चारपासवणं परिट्ठवेइ आयंते चोखे परमसुइभूए तमेव ठाणं उवसंकमित्ताणं विहरइ।
शब्दार्थ - आयंते - आचमित-जल से शुद्धि की, चोक्खे - चोक्ष-स्वच्छ, उवसंकमित्ताउपसंक्रमण कर-वापस आकर।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह विजय चोर से बोला-'मैं तुमको अपने विपुल खान-पान आदि सामग्री में से हिस्सा दे दूंगा।' विजय चोर ने धन्य सार्थवाह का यह कथन सुना। वह उसके साथ एकांत में गया। धन्य सार्थवाह ने मल-मूत्र त्याग किया। जल से शुद्धि की। स्वच्छ एवं पवित्र हुआ। वापस विजय के साथ अपने स्थान पर आ गया।
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