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.. ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - अत्थेगइयाणं देवाणं - किन्हीं-किन्हीं देवों की, आउक्खएणं - आयुक्षय - आयुष्य के कर्मदलिकों को नष्ट कर, ठिइक्खएणं - स्थिति क्षय-आयुष्य कर्म की स्थिति का क्षय कर, भवक्खएणं - भवक्षय-देव भव के कारण रूप गति आदि कर्मों का नाश कर, चयंशरीर, चइत्ता - त्यक्त्वा-त्याग कर, सिज्झिहिइ - सिद्धि - परिनिर्वाण करेगा। . ___भावार्थ - धन्य सार्थवाह ने धर्म का श्रवण कर स्थविर भगवंत धर्मघोष से कहा-भगवन्! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा करता हूँ।
(यावत् संबद्ध पाठ अन्य औपपातिक सूत्र आदि आगमों से ग्राह्य है।) .. धन्य सार्थवाह प्रव्रजित हुआ। यावत् उसने बहुत वर्षों तक श्रामण्य पर्याय साधु जीवन का पालन किया। वैसा कर उसने अंत में आहार का प्रत्याख्यान कर एक मास की संलेखना पूर्वक अनशन के साठ भक्तों का छेदन किया। यों आयुष्य पूर्ण कर वह सौधर्म कल्प में देव रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ किन्हीं किन्हीं देवों की स्थिति चार पल्योपम बतलाई गई है। वहाँ धन्य देव की भी स्थिति चार पल्योपम कही गई है। धन्यदेव आयु, स्थिति एवं भव का क्षय हो जाने पर देह त्याग कर उस देवलोक से महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अंत करेगा।
निष्कर्ष (उपसंहार)
(५३) जहा णं जंबू! धण्णेणं सत्थवाहेणं णो धम्मोत्ति वा जाव विजयस्स तक्करस्स ताओ विपुलाओ असणाओ ४ संविभागे कए णण्णत्थ सरीर सारक्खणट्ठाए एवामेव जंबू! जे णं अम्हं णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा जाव पव्वइए समाणे ववगयपहाणुमद्दण-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारविभूसे इमस्स ओरालिय सरीरस्स णो वण्णहे वा रूवहेडं वा विसयहउँ वा तं विपुलं असणं ४ आहारमाहारेइ णण्णत्थ णाणदंसणचरित्ताणं वहणयाए से णं इहलोए चेव बहणं समणाणं समणीणं सावगाण य सावियाण य अच्चणिज्जे जाव पजुवासणिजे भवइ। परलोए वि य णं णो बहुणि हत्थच्छेयणाणि य कण्णच्छेयणाणि य णासाछेयणाणि य एवं हिययउप्पायणाणि य वसणुप्पायणाणि य उल्लंबणाणि य पाविहिइ अणाईयं च णं अणवदग्गं दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ जहा व से धण्णे सत्थवाहे।
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