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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
कारागृह से मुक्ति
(४२) तए णं से धण्णे सत्थवाहे अण्णया कयाइं मित्तणाइ-णियग-सयणसंबंधिपरियणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ २ त्ता चारगसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव अलंकारिय-सभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं करेइ, करेत्ता जेणेव पुक्खरिणी तेणेव .. उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ २ ता पोखरिणीं ओगाहइ २ त्ता जलमजणं करेइ, करेत्ता प्रहाय कयबलिकम्मे जाव रायमिहं णगरं अणुप्पविसइ २ त्ता रायगिहस्स णगरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ____ शब्दार्थ - रायकज्जाओ - राजदण्ड, मोयावेइ - मुक्त कराता है, अलंकारिय सभा - नापित शाला. - नाई की दूकान, अलंकारिय कम्मं - केश, नख आदि की सफाई, धोयमट्टियंशारीरिक शुद्धि हेतु प्रयुक्त की जाने वाली सुगंधित मृतिका। ___भावार्थ - कुछ समय के बाद धन्य सार्थवाह ने अपने मित्रों पारिवारिकजनों के माध्यम से राजा को बहुमूल्य रत्नादि दिलवाकर राज-दण्ड से स्वयं को मुक्त करा लिया। मुक्त होकर वह कारागृह से रवाना हुआ। नापितशाला में आया। बाल, नाखून आदि कटवाकर दैहिक सज्जा की। फिर वह सरोवर में आया। उसने स्वच्छता हेतु शरीर पर सुगंधित मिट्टी का लेप किया, पुष्करिणी में अवगाहन किया, स्नान किया, नित्य नैमित्तिक पुण्योपचार किए फिर वह राजगृह नगर में प्रविष्ट हुआ। नगर के बीचों बीच होता हुआ वह अपने घर जाने लगा।
मित्रों एवं स्वजनों द्वारा सत्कार
. (४३) तए णं तं धण्णं सत्थवाहं एजमाणं पासित्ता रायगिहे णयरे बहवे णियगसेट्ठि-सत्थवाह-पभिइओ आढ़ति परिजाणंति सक्कारेंति सम्माणति अब्भुटुंति सरीरकुसलं पुच्छंति। तए णं से धण्णे सत्थवाहे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ।
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