Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
देवदत्त का अन्तिम क्रिया-कर्म
(३१) तए णं से धण्णे सत्थवाहे मित्त-णाइ-णियग-सयण-संबंधि परियणेणं सद्धिं रोयमाणे जाव विलवमाणे देवदिण्णस्स दारगस्स सरीरस्स महया इट्टी-सक्कारसमुदएणं णिहरणं करेइ, करेत्ता बहुइं लोइयाइं मयगकिच्चाई करेइ, करेत्ता केणइ कालंतरेणं अवगयसोए जाए यावि होत्था। ____ शब्दार्थ - समुदएणं - जन समूह के साथ, णिहरणं - अन्तिम संस्कार हेतु श्मशान में ले जाना, लोइयाइं- लौकिक, मयगकिच्चाई - मृतक संबंधी कृत्य-लोकाचार, अवगय सोएअपगत शोक-शोक रहित। ___ भावार्थ - धन्य सार्थवाह अपने मित्र, संबंधी पारिवारिक तथा परिजनवृंद के साथ रूदन एवं क्रंदन करते हुए बालक देवदत्त की देह को बड़े वैभव पूर्ण सत्कार समारोह के साथ श्मशान में ले गया। वहाँ लौकिक मृतक क्रियाएं की। वापस लौटा। समय बीतने के साथ वह शोक रहित हुआ।
धन्य सार्थवाह : राज दण्ड
(३२)
तए णं से धण्णे सत्थवाहे अण्णया कयाई लहुसयंसि रायावराहंसि संपलत्ते जाए यावि होत्था। तए णं ते णगरगुत्तिया धण्णं सत्थवाहं गेण्हंति २ त्ता जेणेव चारगे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता चारगं अणुप्पवेसंति २ त्ता विजएणं तक्करेणं सद्धिं एगयओ हडिबंधणं करेंति।।
..शब्दार्थ - लहुसयंसि - छोटे से, रायावराहंसि - राजकीय अपराध, संपलत्ते - फंसा हुआ। ___ भावार्थ - तत्पश्चात् किसी समय धन्य सार्थवाह पर कोई छोटा सा राजकीय अपराध आरोपित हुआ। नगर रक्षक उसे बंदी बनाकर कारागार में ले आए। वहाँ उसको विजय चोर के साथ एक ही बेड़ी-खोड़े में बंद कर दिया।
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