Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तएण से तस्स मेहकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छइ २ त्ता हार - वारिधार - सिंदुवार - छिण्ण-मुत्तावलिप्पगासाइं अंसूणि विणिम्मुयमाणी २ रोयमाणी २ कंदमाणी २ विलवमाणी २ एवं वयासी -: जझ्यव्वं जाया! घडियव्वं जाया! परक्कमियव्वं जाया! अस्सिं च णं अट्ठे णो पमाएयव्वं, “अम्हंपि णं एसेव मग्गे भवउ - " त्तिकट्टु मेहस्स कुमारस्स अम्मायरो समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया ।
शब्दार्थ - जयव्वं - यत्न करना चाहिए, घडियव्वं - घटित क्रियान्वित करना चाहिए, परक्कमियव्वं पराक्रम करना चाहिए, पमाएयव्वं प्रमाद करना चाहिए ।
भावार्थ - मेघकुमार की माता धारिणी ने हंस के समान उज्ज्वल वस्त्र में आभरणों, मालाओं और अलंकारों को ग्रहण किया। उसकी आँखों से टूटी हुई मोतियों की माला से गिर मोतियों की ज्यों आँसू ढलकने लगे। वह रुदन, क्रंदन और विलाप करती हुई बोली - पुत्र ! जो चारित्र तुमने प्राप्त किया है, उसके पालन में सदा यत्नशील रहना, उसे क्रियान्वित करने की सदैव चेष्टा करते रहना, आत्म पराक्रम पूर्वक निभाते जाना, कभी प्रमाद मत करना। हमें भी कभी यह मार्ग प्राप्त हो, ऐसी भावना है। यों कह कर उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वंदन और नमन किया तथा जिस दिशा की ओर से आए थे, उस दिशा की ओर वापस लौट गए।
अनगार - दीक्षा
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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(१५६)
तणं से मेहे कुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदड़ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीआलित्ते णं भंते! लोए, पलित्ते णं भंते! लोए, आलित्तपलित्ते णं भंते! लोए
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