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शब्दार्थ - पडिय
उजड़ा हुआ, उज्जाणे
व्याल-साँप, संकणिजे
शंकनीय भय की आशंका से युक्त ।
भावार्थ
उस गुणशील चैत्य से न अधिक दूर न अधिक समीप - उसके एक भाग में, एक उजड़ा हुआ जीर्ण शीर्ण उद्यान था । उसमें स्थित देवायतन नष्ट हो चुका था। उसके विभिन्न भागों के तोरण टूट चुके थे । अनेक प्रकार के पुष्प गुच्छ, गुल्म, लता, बल्ली तथा वृक्षों से वह आच्छादित था। सैंकड़ों साँपों आदि के कारण वहाँ भय की आशंका बनी रहती थी ।
(४)
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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उद्यान, देवउले - देवायतन, वाल
तस्स णं जिणुज्जाणस्स बहुमज्झ देसभाए एत्थ मं महं एगे भग्गकूवए यावि
होत्था ।
शब्दार्थ - बहुमज्झ-देसभाए - बीचों बीच, भग्गकूवए भग्नकूप- टूटा-फूटा कुआँ । भावार्थ - उस जीर्ण-शीर्ण उद्यान के बीचों-बीच एक बहुत बड़ा टूटा-फूटा कुआँ भी था ।
(५)
तस्स णं भग्गकूवस्स अदूरसामंते एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए यावि होत्था किण्हे किण्हो भासे जाव रम्मे महामेह - णिउरंबभूए बहूहिं रुक्खेहि य गुच्छेहि य गुम्मेहि य लयाहि य वल्लीहि य तणेहि य कुसेहि य खाणुएहि य संछण्णे पलिच्छपणे अंतो झुसिरे बाहिं गंभीरे अणेग-वालसय-संकणिज्जे यावि होत्था ।
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शब्दार्थ - मालुयाकच्छए मालुका संज्ञक वृक्षों से युक्त भू भाग, किण्हे - कृष्ण वर्ण युक्त, किण्होभासे - कृष्ण प्रभायुक्त, णिउरंब - समूह, कुसेहि दर्भ द्वारा, संछण्णे - व्याप्तछाया हुआ, पलिच्छपणे - विशेष रूप से आच्छादित, झुसिरे भीतर से सावकाश खुला ।
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भावार्थ - उस टूटे-फूटे कुएं से न ज्यादा दूर और न पास ही मालुका वृक्षों की बहुलता से युक्त भूभाग था । वह कृष्ण वर्ण एवं कृष्ण प्रभा से युक्त था, यावत् अत्यंत रमणीय था । बड़े-बड़े बादलों के समूह जैसे वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, तृण, कुश तथा ठूंठ आदि से सघनतया आच्छादित था। वह भीतर से सावकाश खुला तथा बाहर अति सघन था। सैकड़ों साँपों के कारण वहाँ भय की आशंका बनी रहती थी।
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