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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
___ भावार्थ - गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिर्वृत होगा, समस्त दुःखों का नाश करेगा।
(२१८) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं जाव संपत्तेणं अप्पोपालंभ-णिमित्तं पढमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
शब्दार्थ - जंबू! धर्म प्रवर्तक, तीर्थ प्रवर्तक, सिद्धत्व प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने हितैषी गुरु द्वारा अविहितकारी (अविनीत) शिष्य को उपालम्भ (शिक्षा) देने के निमित्तभूत णाया धम्मकहाओ सूत्र के प्रथम ज्ञाता अध्ययन का यह अर्थ कहा है- इस प्रकार आशय निरूपण किया है। जैसा भगवान् ने प्ररूपित किया है, वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ।
गाहा - महुरेहिं णिउणेहिं वयणेहिं चोययंति आयरिया। । सीसे कहिँचि खलिए जह मेहमुणिं महावीरो॥१॥
॥ पढमं अज्झयणं समत्तं॥ , गाथा शब्दार्थ - णिउणेहिं - युक्ति युक्त, चोययंति - प्रेरणा प्रदान करते हैं, खलिएस्खलित-शिथिल होने पर।
भावार्थ - शिष्य के जरा भी स्खलित-संयम-पालन में शिथिल होने पर आचार्य मधुर, युक्ति युक्त वचनों द्वारा उसे उसमें सुस्थिर बने रहने की प्रेरणा प्रदान करते हैं, जैसे भगवान् महावीर स्वामी ने मेघमुनि को प्रेरित किया।
॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥
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