Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
वाले, मम्मणपयंपियाई - बालसुलभ तुतली बोली में बोलने वाले, थणमूल-कक्ख-देसभागंस्तनमूल से कक्ष-काँख की ओर, अभिसरमाणाई - सरकते हुए, मुद्धयाई - मुग्ध-मनोहर (शिशु), उच्छंगे- गोद में, णिवेसियाई देंति-सन्निविष्ट करती हैं-रखती हैं, एत्तो - अब तक।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह की पत्नी भद्रा, एक बार आधी रात के समय कुटुम्ब विषयक चिंता में संलग्न थी। उसके मन में यह विचार आया कि मैं बहुत वर्षों से अपने पति के साथ शब्द, रस, गंध आदि मानुषिक काम भोगों का सुखानुभव करती विचर रही हूँ किंतु अब तक मैं एक भी शिशु-पुत्र या पुत्री को जन्म नहीं दे पायी। ___वास्तव में वे माताएँ धन्य हैं, भाग्यशालिनी हैं, उन माताओं का मनुष्य जन्म निश्चय ही सफल है, जिनकी कोख से उत्पन्न, स्तनों का दुग्धपान करने में अति उत्सुक, मीठी और तुतलाती बोली में बोलने वाले शिशु स्तनमूल से कक्ष प्रदेश की ओर सरक कर दूध पीते हैं। माताएँ अपने कमल सदृश सुकुमार हाथों में लेकर उन्हें गोदी में बिठाती हैं तथा अत्यंत प्रिय एवं मधुर वाणी में उनसे आलाप करती हैं। मैं अभागिन हूँ, पुण्यहीना हूँ, अशुभ लक्षणा हूँ क्योंकि मुझे इनमें से कुछ भी प्राप्त नहीं है।
(१२) ... तं सेयं मम कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलंते धण्णं सत्थवाहं आपुच्छित्ता धण्णेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी सुबहुं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता सुबहु पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहहिं मित्तणाइ-णियग-सयण-संबंधि-परिजण-महिलाहिं सद्धिं संपरिवुडा जाई इमाई रायगिहस्स णयस्स बहिया णागाणि य भूयाणि य जक्खाणि य इंदाणि य खंदाणि य रुद्दाणि य सेवाणि य वेसमणाणि य तत्थ णं बहूणं णागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य महरिहं पुप्फच्चणियं करेत्ता जाणुपाय-पडियाए एवं वइत्तए-जइ णं अहं देवाणुप्पिया! दारगं वा दारिगं वा पयायामि तो णं अहं तुम्भं जायं च दायं च भायं च अक्खयणिहिं च अणुवड्ढेमि त्तिकटु उवाइयं उवाइत्तए।
शब्दार्थ - जाई - जो, इमाइं - ये, पुप्फच्चणियं - पुष्पार्चन-पुष्पों द्वारा अर्चना,
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