Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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संघाट नामक दूसरा अध्ययन - धन्य सार्थवाह : परिचय
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धन्य सार्थवाह : परिचय
तत्थ णं रायगिहे णयरे धण्णे णामं सत्थवाहे अढे दित्ते जाव विउलभत्तपाणे। तस्स णं धण्णस्सं सत्थवाहस्स भद्दा णामं भारिया होत्था सुकुमाल पाणिपाया अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदिय-सरीरा लक्खणवंजण-गुणोववेया माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्ण सुजाय-सव्वंग सुंदरंगी ससिसोमागारा कंता पियदसणा सुरूवा करयलपरिमिय-तिवलियमज्झा कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा कोमुइ-रयणियर-पडिपुण्ण सोमवयणा सिंगारागार-चारुवेसा जाव पडिरूवा वंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाया यावि होत्था। ___ शब्दार्थ - अड्डे - वैभवशाली, दित्ते - दीप्त-प्रभावशाली, भारिया - पत्नी, वंजण - वैशिष्टय सूचक तिल मस आदि चिह्न, करयल परिमिय - मुष्टिग्राह्य-मुट्ठी में समा सके ऐसी पतली, तियवलिय - तीन रेखाओं-सलवटों से युक्त, मज्झा - मध्य भाग-कटि, उल्लिहियघिसी जाती. हुई, गंडलेहा - कपोल रेखा, पडिरूवा - सौंदर्य की प्रतिमूर्ति, वंझा - वन्ध्या - संतान रहित, अवियाउरी - संतानोत्पत्ति में सर्वथा अयोग्य, जाणु-घुटने, कोप्पर-कर्पूर-कोहनी। .. भावार्थ - राजगृह नगर में धन्य नाम का सार्थवाह था। वह अत्यंत धनी एवं प्रभावशाली
था। उसके घर में धन-धान्य एवं खाद्य-पेय पदार्थों की विपुलता थी। धन्य सार्थवाह की भद्रा नामक पत्नी थी। उसके हाथ पैर सुकुमार थे। उसके शरीर की पांचों इन्द्रियाँ रचना की दृष्टि सें अखंडित परिपूर्ण तथा अपने अपने विषयों को ग्रहण करने में सक्षम थीं। वह सौभाग्य सूचक हाथ की रेखाओं, व्यंजन वैशिष्ट्य सूचक तिल, मस आदि चिह्न, शील, सदाचार पातिव्रत्य आदि गुणों से युक्त थी। दैहिक विस्तार, वजन ऊँचाई आदि की अपेक्षा से वह परिपूर्ण एवं उत्तम थी, सर्वांग सुंदर थी। उसका आकार शशि के सदृश सौम्य, कांत और दर्शनीय था। वह अत्यंत रूपवती थी। उसके शरीर का मध्यवर्ती भाग-कटि प्रदेश हथेली के विस्तार जितना अथवा मुट्ठी द्वारा गृहीत किया जा सके उतना-सा था। उसका पेट अपने पर पड़ने वाली तीन रेखाओंसलवटों से युक्त था। कानों से झूमते हुए कुंडलों से उसके कपोलों पर अंकित अंगराग की
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