Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(१७३) तए णं तुम मेहा उम्मुक्क-बालभावे जोव्वणग-मणुप्पत्ते जूहवइणा कालधम्मुणा संजुत्तेणं तं जूहं सयमेव पडिवज्जसि।
शब्दार्थ - उम्मुक्कबालभावे - बाल्यावस्था पार कर, जोव्वणग-मणुप्पत्ते - युवावस्था प्राप्त होने पर, कालधम्मुणा संजुत्तेणं - काल धर्म से संयुक्त होने पर-मरने पर।
भावार्थ - मेघकुमार! तुम बाल्यावस्था को पार कर युवा हुए। जब तुम्हारे यूथ का पति हस्तिराज का देहान्त हो गया तब तुम स्वयं उस यूथ के अधिपति हो गए।
(१७४) तए णं तुम मेहा! वणयरेहिं णिव्वत्तिय-णामधेज्जे जाव चउदंते मेरुप्पभे हत्थिरयणे होत्था। तत्थ णं तुम मेहा! सत्तंगपइट्टिए तहेव जाव पडिरूवे। तत्थ णं तुमं मेहा! सत्तसइयस्स जूहस्स आहेवच्चं जाव अभिरमेथा।
शब्दार्थ - अभिरमेत्था - अभिरमण करने लगे।
भावार्थ - मेघ! वनचरों ने तुम्हारा नाम मेरुप्रभ रखा। तुम चार दाँतों से युक्त, श्रेष्ठ हाथी के रूप में विकसित हुए। तुम्हारे सातों अंग सुगठित, परिपूर्ण थे। तुम बहुत ही सुंदर थे। एक हजार हाथियों का आधिपत्य करते हुए सुखपूर्वक अभिरमण करने लगे। जातिस्मरण ज्ञान का उद्भव
(१७५). तए णं तुमं अण्णया कयाइ गिम्हकालसमयंसि जेट्टामूले वणदवजाला पलित्तेसु वणंतेसु सुधूमाउलासु दिसासु जाव मंडलवाए व्व परिब्भमंते भीए तत्थे जाव संजायभए बहूहिं हत्थीहि य जाव कलभियाहि य सद्धिं संपरिवुड़े सव्वओ समंता दिसोदिसिं विप्पलाइत्था।
तए णं तव मेहा! तं वणदवं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-कहि णं मण्णे मए अयमेयारूवे अग्गिसंभवे अणुभूयपुव्वे? तए .
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