Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
फासेत्ता पालित्ता सोहेत्ता तीरेत्ता किट्टेत्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ
णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी
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शब्दार्थ - अहासुत्तं - यथा सूत्र - सूत्र प्रतिपादित आचार के अनुसार, अहाकप्पं
कल्प- स्थविर आदि के लिए निर्धारित कल्प- आचार अनुसार, अहामग्गं यथा मार्ग-ज्ञानदर्शन - चारित्र मूलक मोक्षमार्गानुगत, फासेइ - स्पर्श करता है - समुचित काल में सविधि ग्रहण करता है, पालेइ - पालन करता है, सोहेइ - शोभित करता है या शोधित करता है, तीरेइ तीर्ण करता है - पूर्ण होने पर कुछ समय उसमें और स्थिर रहता है, किट्टेइ - कीर्तित-भली भाँति परिपालित प्रतिमाओं का आत्मतोष पूर्वक स्मरण करता है।
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भावार्थ भगवान् महावीर स्वामी द्वारा आज्ञा पाकर मेघकुमार मासिक प्रतिमा को स्वीकार कर विचरण करने लगा। वह मासिक प्रतिमा का सूत्र निर्दिष्ट आचार कल्प एवं मार्ग के अनुसार भली भाँति शरीर द्वारा स्पर्श, ग्रहण एवं पालन करता है। अपने वैराग्य एवं तितिक्षापूर्ण आचरण द्वारा शोभित करता है, संतीर्ण एवं संकीर्तित करता है। ऐसा कर वह भगवान् महावीर स्वामी को वंदन, नमस्कार करता है और उनसे कहता है।
यथा
(१६७)
" इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे दोमासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।" "अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह । " जहा पढमा अभिलाव तहा दोच्चाए तच्चाए चउत्थाए पंचमाए छम्मासियाए सत्तमासियाए पढमसत्तराइंदियाए दोच्चं सत्तराइंदियाए तइयं सत्तराइंदियाए अहोराइंदियाएवि एगराइंदियाएवि ।
शब्दार्थ - अभिलावो - आलापक- प्रतिपादन ।
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भावार्थ - मैं आपसे आज्ञा प्राप्त कर द्वैमासिक भिक्षु प्रतिमा को स्वीकार कर विचरण करना चाहता हूँ। भगवान् ने कहा- देवानुप्रिय ! जिससे तुम्हारी आत्मा को सुख प्राप्त हो, वैसा करी किंतु वैसा करने में प्रमाद - विलंब मत करो। जैसे पहली - एक मासिक प्रतिमा का आलापक-वर्णन है, उसी प्रकार तीसरी, चौथी, पांचवी, छठी, एवं सातवीं का है, जो क्रमशः दो तीन, चार, पांच, छह, सात मास परिमित है। पहली से सातवीं प्रतिमाओं का कालमान एक एक मास का है । पूर्व
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