Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
आत्मशोधन करते हुए, अनशन के साठ भक्त छेद कर-तीस दिन का उपवास कर, आलोचनाप्रत्यालोचना एवं माया-मिथ्यात्व आदि शल्यों का उद्धरण कर समाधि प्राप्त दशा में क्रमशः कालधर्म को प्राप्त किया।
(२११) तए णं ते थेरा भगवंतो मेहं अणगारं आणुपुव्वेणं कालगयं पासेंति २ त्ता परिणिव्वाण-वत्तियं काउस्सगं करेंति २ ता मेहस्स आयारभंडगं गेण्हंति २ ता. विउलाओ पव्वयाओ सणियं २ पच्चोरुहंति २ ता जेणामेव गुणसिलए चेइए जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी -
शब्दार्थ - परिणिव्वाण-वत्तियं - परिनिर्वाणप्रत्ययिक-मुनि की मृत देह के परिष्ठापन हेतु किया जाने वाला, आयारभंडगं - आचार परिपालन निमित्तक वस्त्र, पात्र आदि उपकरण, पच्चोरुहंति - प्रत्यारोहण करते हैं, नीचे उतरते हैं। , भावार्थ - स्थविर भगवंतों ने मुनि मेघकुमार को क्रमशः कालगत देखा। तब उन्होंने परिनिर्वाण प्रत्ययिक कायोत्सर्ग किया। मेघकुमार के उपकरणों को लिया। विपुलाचल से धीरेधीरे नीचे उतरे और गुणशील चैत्य में भगवान् महावीर स्वामी के पास पहुँचे। भगवान् को उन्होंने वंदन नमन कर इस प्रकार कहा।
(२१२) एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे णामं अणगारे पगइभद्दए जाव विणीए। से णं देवाणुप्पिएहिं अब्भणुण्णाए समाणे गोयमाइए समणे णिग्गंथे णिग्गंथीओ य खामेत्ता अम्हेहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं २ दुरूहइ, दुरूहित्ता सयमेव मेहघण-सण्णिगासं पुढवि-सिलापट्टयं पडिलेहेइ २ ता भत्तपाणपडियाइक्खिए अणुपुव्वेणं कालगए। एस णं देवाणुप्पिया! मेहस्स अणगारस्स आयारभंडए।
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