Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(१९२) तए णं से मेहे समणस्स भगवओ महावीरस्स अयमेयारूवे धम्मियं उवएसं सम्म पडिच्छइ २ ता तह चिट्ठइ जाव संजमेणं संजमइ। तए णं मेहे अणगारे जाए इरियासमिए अणगार-वण्णओ भाणियव्वो।
भावार्थ - मेघ ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का यह धर्मोपदेश भली भांति स्वीकार किया और जैसा पूर्व वर्णित हुआ है, संयम में अनुरत हुआ। .
वह ईर्यासमिति आदि सभी नियमोपनियम का पालन करते हुए अणगार धर्म में संलग्न हुआ। तद्विषयक वर्णन अन्य आगम-औपपातिक से ग्राह्य है । . .
- (१९३) तए णं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तहारूवाणं थेराणं सामाइय-माइयाणि एक्कारस अंगाई अहिजइ २ ता बहुहिं चउत्थ-छ8ट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्ध मासखमणेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
शब्दार्थ - तहारूवाणं - कथनी करनी की समानता वाले, थेराणं - स्थविरों के, आइयाणि - आदि, अहिजइ - अध्ययन करता है, चउत्थ - उपवास, छटुं - दो दिन का उपवास-बेला, अटुं - तीन दिन का उपवास-तेला, दसं - चार दिन का उपवास-चौला, दुवालसेहिं - पांच दिन का उपवास-पंचौले से, मासद्ध - अर्द्धमासखमण, मासखमणेहिं - मासखमण से।
भावार्थ - मेघकुमार ने भगवान् महावीर स्वामी के सान्निध्य में रहते हुए सुयोग्य स्थविरों से, सामायिक से प्रारंभ कर षडावश्यक रूप आवश्यक सूत्र तथा आचारांग सूत्र से लेकर विपाक सूत्र पर्यन्त ग्यारह अंग सूत्रों का अध्ययन किया। वह एक, दो, तीन, चार तथा पाँच दिनों के उपवास, अर्द्धमासिक एवं मासिक उपवास द्वारा आत्मा को भावित-संयमोल्लसित करता हुआ, विहरणशील रहा।
• मधुरकरजी वाली प्रति - उववाइयसुत्त, सूत्र १७ पृष्ठ ६५-६७
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