Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - प्रतिबोध हेतु पूर्वभव का आख्यान
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भावार्थ - मेघ! तुम्हारे शरीर में तीव्र, कठोर एवं असह्य वेदना उत्पन्न हुई। जिसके कारण तुम्हारा शरीर पित्तज्वर के दाह से जल उठा। सात दिन रात तक तुम इस वेदना को भोगते रहे। एक सौ बीस वर्ष की आयु प्राप्त कर, अत्यधिक आर्त्तध्यान एवं घोर विषाद के साथ तुमने प्राण-त्याग किया। फिर इसी जंबूद्वीप भारत वर्ष के अंतर्गत, दक्षिणार्द्ध भरत में गंगा महानदी के दाहिने किनारे पर, विन्ध्याचल पर्वत की तलहटी में एक मदोन्मत्त उत्तम गंध हस्ती द्वारा एक श्रेष्ठ हथिनी की कोख में, हाथी के बच्चे के रूप में आए। नव मांस पूर्ण होने पर उस तरुण हथिनी ने बसंत मास में तुम्हें जन्म दिया।
- विवेचन - आगम में युगलियों का वर्णन आता है। तीन पल्योपम वाले युगलिये ४६ अहोरात्र में, दो पल्योपम वाले युगलिये ६३ (या ६४) अहोरात्र में और एक पल्योपम वाले युगलिये ७६ अहोरात्र में जवान बन जाते हैं। जिस प्रकार स्थिति घटने के साथ-साथ जवानी प्राप्त होने का कालमान युगलियों के बढ़ना बताया है। वैसे ही गर्भ के कालमान में भी अलगअलग युग में न्यूनाधिक होना असंभव नहीं लगता है। इस दृष्टि से वर्तमान् युग में हाथी के गर्भ का कालमान अधिक होते हुए भी उस युग में नव महीने का कालमान असंभव नहीं है। अथवा आगम लेखन काल में व्यवस्थित आगम संदर्भ उपलब्ध नहीं होने के कारण सर्वानुमति से इस प्रकार का लेखन हो गया हो क्योंकि सर्वज्ञों की वाणी प्रत्यक्षादि विरुद्ध नहीं होती है। ,
(१७२) तए णं तुमं मेहा! गब्भवासाओ विप्पमुक्के समाणे गयकलभए यावि होत्था रत्तुप्पल-रत्त-सूमालए जासुमणा-रत्त-पारिजातय-लक्खारस-सरस कुंकुम संझन्भरागवण्णे इठे णियगस्स जूहवइणो गणियायारकणेरु-कोत्थ-हत्थी अणेग-हत्थिसय-संपरिवुडे रम्मेसु गिरिकाणणेसु सुहंसुहेणं विहरसि।
शब्दार्थ - रत्तपारिजातय - रक्त वर्ण का पारिजात संज्ञक वृक्ष, गणियायार - गणिकाओं के समान, कणेरु - तरुण हथिनी, कोत्थ - उदर प्रदेश, हत्थ - सूंड। __भावार्थ - मेघ! तुम गर्भवास से विप्रमुक्त होकर, जन्म लेकर, छोटे हाथी के रूप में विकसित हुए। तुम्हारी देह लाल कमल, जपा कुसुम, रक्तवर्णी पारिजात पुष्प, लाक्षारस और संध्याकालीन मेघों के रंग के समान रक्तवर्ण युक्त एवं सुकुमार थी। अपने यूथपति के तुम अत्यंत प्रिय थे। गणिकाओं जैसी सुंदर युवा हथनियों के उदर प्रदेश का अपनी सूंड से संस्पर्श करते हुए, सैकड़ों हाथियों से घिरे हुए, पर्वत के रमणीय काननों में सुख पूर्वक विचरण करने लगे।
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