Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - विशाल मंडल की संरचना
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नम तल, वाउलिया - वातुलिका-चक्रवात, दारुणतरे - अति भयंकर, दोस दूसिय - वेदना पीड़ित, वस॒ते - वर्तमान, वियंभिएण - प्रबल बने हुए, अब्भहिय - अत्यधिक, महुधारा - मधुधारा, उद्धायमाण - बढ़ते हुए, सदुद्धएणं - शब्दायमान, दित्ततर सफुलिंगेणं - अत्यंत दीप्त-चिनगारियों से युक्त, सावयसयंत करणेणं - सैकड़ों जंगली प्राणियों का अंत करने वाले, जालालोविय - अग्नि की ज्वालाओं से आच्छादित, आयवालोय - अग्नि जनित ताप का अवलोकन, पवणोल्लिय - प्रचण्ड वायु द्वारा प्रेरित, अवगयौं - अपगत-दूर किए गए, संताणकारणट्ठाए - त्राण पाने के लिए, पहारेत्थ - निश्चय किया, गम - आलापक-पाठ।
भावार्थ - मेघ! तुम जब इस प्रकार हाथी के रूप में थे, तब कमलिनियों के वन को विध्वस्त करने वाले, कुंद लोघ्र एवं तुषार से श्वेत बने, हेमंत ऋतु के समाप्त हो जाने पर क्रमशः ग्रीष्म काल आया, उस समय तुम वनों में विचरण करते थे। क्रीड़ारत हथिनियाँ तुम्हारे पर प्रेमवश धूलि फेंकती थी। उस ऋतु में होने वाले विविध पुष्पों से रचित, चामर जैसे कर्ण भूषणों से तुम बड़े ही सुशोभित और मनोज्ञ प्रतीत होते थे। तुम्हारे गण्डस्थल मद के झरने से गीले बने रहते थे और तुम इस मद जल के कारण अत्यंत सौरभमय थे। ग्रीष्म ऋतु की प्रचण्ड किरणे सर्वत्र फैल रही थी। वृक्षों के शिखर सूख गए थे। बड़ा ही दुःसह वातावरण था। झिल्लियों का झींगार (शब्द) भयानक लगता था। पत्ते, लकड़ियाँ, तिनकों के कचरे को उड़ाए लिए चलने वाले प्रतिकूल वायु द्वारा गगनतल और वृक्ष आच्छादित हो गए थे। घोर प्यास की वेदना के कारण जंगली प्राणी इधर-उधर भटक रहे थे। इस प्रकार वह जंगल बड़ा भीषण प्रतीत होता था। अकस्मात् लगे दावानल ने उसकी दारुणता को और ही बढ़ा दिया। वायु प्रकोप से यह दावानल और तेजी से धधकने लगा। वृक्षों से चूने वाली मधु धाराओं से सिंचित होता हुआ वह दावानल और अधिक बढ़ता गया। इसमें सुलगती, चमकती चिनगारियाँ उड़ रही थी, सब ओर धुएँ की कतारें फैल रही थीं।
मेघ! इस दावानल की भीषण ज्वालाओं से तुम आच्छादित, अवरुद्ध हो गए। इच्छानुसार चलने का सामर्थ्य तुम में नहीं रहा। धूम जनित अंधकार से तुम अत्यंत भयभीत हो गए। अग्नि के भीषण ताप के कारण तुम्हारे दोनों कान रहँट की तुम्बिकाओं के समान खड़े हो गए। तुम्हारी स्थूल सूंड संकुचित हो गई। तुम भौचक्के से इधर-उधर देखने लगे। तुमने दावानल से त्राण पाने हेतु जहाँ पहले वृक्ष-तृणादि हटाकर मंडल बनाया था, उसी ओर जाने का निश्चय किया।
इस संबन्ध में यह एक गम (वर्णन) है, पाठ का एक प्रकार है।
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