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। प्रथम अध्ययन - प्रतिबोध हेतु पूर्वभव का आख्यान
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कद्दम- कीचड़, झीण - क्षीण, भिंगारक - झिल्ली नामक कीट विशेष, खर फरुस - अत्यंत कर्कश, रिट्ठ - काक, वाहीत्त - काँव-काँव की आवाज, विदुमग्गेसु - अग्नि के ज्वलन से मूंगे की ज्यों लाल दीखने वाले अग्रभागों से युक्त, तण्हावस - प्यास के कारण, मुक्क पक्ख - शिथिल पंख युक्त, पयडिय - प्रकटित - बाहर निकले हुए, जिब्भ-तालुयजिह्वा तालु, असंपुडिय - खुले हुए, तुंड - मुख, ससंतेसु - तेज श्वास छोड़ते हुए, गिम्ह उण्ह - ग्रीष्म ऋतु की उष्णता, उण्हवाय - प्रचण्ड सूर्य की किरणों से जनित संताप, वाउलिवात्या - चक्रवात, दित्त - त्रस्त-डरे हुए, संभंत - संभ्रातियुक्त, सावया - सिंहादि जंगली प्राणी, आउल - व्याकुल, मिगतण्हा - मृग तृष्णा-मृगमरीचिका, चिंधपट्टेसु - ध्वजा वस्त्र युक्त, संवट्टिएसु - एकत्र सम्मिलित, तत्थ - त्रासयुक्त, मिय - मृग, पसय - जंगली चौपाए प्राणी, सरीसिवेसु - सरीसृप-पेट के बल रेंग कर चलने वाले, अवदालिय - खुले हुए, णिल्लालियग्गजीहे - जीभ को बहार निकाले हुए, महंततुंबइय-पुण्णकण्णे - भय से व्याकुल होने के कारण तुम्बिकाकार कर्ण युक्त, धोर - स्थूल, पीवर - पुष्ट, कर - सूंड, णंगुले -. पूंछ, पीणाइय - बिजली की गर्जना के समान भयानक, विरस - अप्रिय, रडियसद्देणं - चिंघाड़ शब्द द्वारा, फोडयंतेव - फोड़ता हुआ सा, पाय-दहरएणं - पाद के आघात द्वारा, मेइणितलं - भूमितल को, विणिम्मुयमाणे - छोड़ता हुआ, सीयारं - जल कण, सव्वओ समंता - सब ओर, वल्लिवियाणाई - विस्तृत लता समूह, छिंदमाणे - छिन्न-भिन्न करता हुआ, णोल्लायंते - कंपाता हुआ, विणट्ठरहे - जिसका राष्ट्र-राज्य नष्ट हो गया हो, णरवरिंदेनरवरेन्द्र-महानराजा, वायाइद्धे - प्रचण्ड पवन से हिलाए गए, पोए - पोत, मंडल वाएव्व - गोलाकार वायु की तरह, अभिक्खणं - क्षण-क्षण-पुनः-पुनः, लिंडणियरं - अत्यधिक लीद, पमुंचमाणे - छोड़ता हुआ, विप्पलाइत्था - भागने लगा।
. भावार्थ - एक बार का प्रसंग है, वर्षा-शरद्-हेमंत और बसंत ऋतुएं क्रमशः व्यतीत हुई। ग्रीष्म ऋतु का आगमन हुआ। जेठ का महीना था। वृक्षों की पारस्परिक रगड़ से आग उत्पन्न हो गई। सूखे पत्तों, घास एवं कचरे से, तेज हवा से आग अत्यंत भयंकर हो गई। उस दावानल की ज्वालाओं से वन सुलग उठा। दिशाएं धुएँ से भर गईं। प्रचण्ड वायु का वेग बढता गया, जिससे 'अग्नि की ज्वालाएँ चारों ओर फैलने लगीं। खोखले वृक्ष भीतर ही भीतर जल उठे। भरे हुए । मृगादि पशुओं के शव सभी ओर फैल गए। उनके कारण नदी नालों का जल सड़ने लगा। भंगारक पक्षी. दैन्य पूर्वक क्रंदन करने लगे। वृक्षों पर बैठे कौवे कर्कश ध्वनि में काँव-काँव करने
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