Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - मेघकुमार का उद्वेग
१४५
समयंसि वायणाए पुच्छणाए जाव महालियं च णं रत्तिं णो संचाएमि अच्छिं णिमिलावेत्तए, तं सेयं खलु मज्झं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीय जाव तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमझे वसित्तए-त्तिकटु एवं संवेहेइ, संवेहेत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट-माणस-गए णिरय पडिरूवं च णं तं रयणिं खवेइ, खवेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए सुविमलाए रयणीए जाव तेयसा जलंते जेणामेव समणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जाव पजुवासइ।
शब्दार्थ · समुप्पजित्था - उत्पन्न हुआ, रण्णो - राजा का, अत्तए - आत्मज, आढायंति - आदर करते, अट्ठाई - जीवादि पदार्थों को, हेऊई - न्याय युक्ति द्वारा, पसिणाईप्रश्नों को, वागरणाई - विवेचन, विश्लेषण को, जप्पभिई - जब से, तप्पभिई- तब से, अदुत्तरं - अनंतर, सेयं -- श्रेयस्कर, मज्झं - मेरे लिए, कल्लं - कल, पाउप्पभायाए रयणीए. - रात्रि के व्यतीत होने पर प्रातःकाल, तेयसा - तेज से जलते-प्रज्वलित होने पर, आपुच्छित्ता - आज्ञा लेकर, अदुहट्टवसट्टे - आर्तध्यान एवं दुःख से पीड़ित, णिरयपडिरूवंनरक के समान, खवेइ - बिताता है। ___भावार्थ - तब मेघकुमार के मन में ऐसा भाव उत्पन्न हुआ-“मैं राजा श्रेणिक का पुत्र हूँ, धारिणी का आत्मज हूँ। जब मैं घर में था, तब श्रमण निर्ग्रन्थ मेरा आदर सत्कार एवं सम्मान करते थे। जीवाजीवादि पदार्थ, तद्विषयक प्रश्न आदि युक्ति पूर्वक समझाते थे, विश्लेषण करते थे। इष्ट एवं प्रिय वाणी से आलाप-संलाप करते थे। जब से मैं मुंडित होकर अनगार धर्म में प्रव्रजित हुआ हूँ, साधुगण न मेरा आदर करते हैं और न प्रिय वाणी से आलाप संलाप ही करते हैं। इतना ही नहीं पिछली रात के पहले और अन्तिम समय में वाचना, पृच्छना आदि हेतु मुनियों का आना-जाना रहा, जिससे मैं उनसे अनेक प्रकार के टकराव आदि से दुःखित हुआ। इस लम्बी रात्रि में मैं अपनी आँखें भी बंद नहीं कर पाया। मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं कल, रात्रि व्यतीत होने पर प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछ कर आज्ञा लेकर पुनः गृहवास हेतु चला जाऊँ।" इस प्रकार चिंतन-मंथन में लगा रहा। उसका मन आर्तध्यान और दुःख में निमग्न रहा। नरकवास की तरह उसने किसी तरह रात्रि बिताई। सवेरा होने पर, सूरज निकल जाने के बाद वह भगवान् महावीर स्वामी के पास आया। उनको
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