Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
अत्यंत सावधानी से मेघकुमार के मस्तक के दीक्षोपयोगी चार अंगुल प्रमाण बाल छोड़कर शेष संवर्धित केशों को काटा।
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(१४१)
तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया महरिहेणं हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ २ त्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ २ त्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चाओ दलय २ त्ता सेयाए पोत्तीए बंधइ २ त्ता रयणसमुग्गयंसि पक्खिवइ २ त्ता मंजूसाए पक्खिवइ २ त्ता हार - वारिधार - सिंदुवार -. छिण्णमुत्ता वलिप्पगासाई अंसूई विणिम्मुयमाणी २ रोयमाणी २ कंदमाणी २ विलवाणी २ एवं वयासी - "एस णं अम्हं मेहस्स कुमारस्स अब्भुद सुय उस्सवेसु य पव्वेसु य तिहीसु य छणेसु य जण्णेसु य पव्वणीसु य अपच्छिमे दरिस भविस्सइ त्ति कट्टु उस्सीसामूले ठवेइ । "
उज्ज्वल
शब्दार्थ - हंसलक्खणेणं - हंस के समान श्वेत, सुकोमल, पडसाडएणं वस्त्र में, 'बच्चाओ - चर्चित कर छिड़क कर, रयणसमुग्गयंसि - रत्नडिबियां, पक्खिवइ रखती है, मंजूसाए- पेटी, सिंदुवार निर्गुण्डी के श्वेत पुष्प, छिण्णमुत्तावलि - टूटी हुई मोतियों की माला, पव्वेसु - समारोह मूलक विशेष पर्वो पर, जण्णेसु- दया दान - साधर्मिक वात्सल्यादि के विशेष अवसरों पर, पव्वणीसु- कार्तिकादि में आयोज्यमान कौमुदी - महोत्सवों में, अपच्छिमे - अपश्चिम अंतिम, उस्सीसामूले - सिरहाने या तकिये के नीचे ।
भावार्थ - तब मेघकुमार की माता ने उन केशों को बहुमूल्य तथा हंस के समान उज्ज्वल वस्त्र में ग्रहण किया। उन्हें सुरभित गंधोदक से प्रक्षालित किया। फिर उन पर सरस गोशीर्ष चंदन के छींटे दिए, सफेद वस्त्र में बांध डिबिया में रख कर पेटी में रखा। जल की धारा, निर्गुण्डी पुष्प तथा मोतियों के टूटे हार के समान अपनी आँखों से आँसू बहाती हुई रुदन, क्रंदन एवं विलाप करती हुई वह बोली- ये केश, राज्य लक्ष्मी आदि लाभ रूप समारोहों, विशेष उत्सवों, पर्वों, तिथियों, क्षणों, दया दान-साधर्मिक वात्सल्यादि रूप विशेष आयोजनों एवं कौमुदी - महोत्सव आदि प्रसंगों पर, मेघकुमार के लौकिक जीवन के अंतिम दर्शन के प्रतीक होंगे। यों कह कर रानी धारिणी ने उस मंजूषा को अपने सिरहाने के नीचे रखा ।
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