Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - प्रव्रज्या की पूर्वभूमिका
१३५
(१४६) तए णं तस्स मेहकुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारा जाव कुसला सीयं जाव दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुरओ पुरत्थिमेणं चंदप्पभ-वइर-वेरुलिय विमल दंडं तालविंटं गहाय चिट्ठइ।
'भावार्थ - उसके बाद पूर्वोक्त सुंदर रूप चारुवेश, कार्यकुशलता इत्यादि विशेषताओं से युक्त एक युवा स्त्री शिविका पर आरूढ हुई। वह चंद्रकांत वज्र तथा वैडूर्य रत्नमय, निर्मल दंडयुक्त, ताड़ के पत्तों से बने पंखे को अपने हाथों में लिए मेघकुमार के समीप पूर्व दिशा में खड़ी हुई।
(१५०) ___तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी जाव सुरूवा सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुव्व-दक्खिणेणं सेयं रययामयं विमल-सलिल-पुण्णं मत्तगय-महामुहा-कितिसमाणं भिंगारं गहाय चिट्ठइ।
शब्दार्थ - मत्तगयमहामुहाकितिसमाणं - मदोन्मत्त हाथी के विशाल मुख की आकृति के समान। ___ भावार्थ - एक रूपवती युवा स्त्री शिविका पर आरूढ हुई तथा पूर्व-दक्षिण-आग्नेय कोण में निर्मल जल से परिपूर्ण, उन्मत्त हाथी के मुख जैसी, रजतमय झारी को लेकर खड़ी हुई।
(१५१) तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं एगाभरण-गहिय-णिजोयाणं कोडुबिय-वरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेह जाव सद्दावेंति। तए णं ते कोडुंबियवर तरुण पुरिसा सेणियस्स रण्णो कोडुंबिय पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठा बहाया जाव एगाभरण-गहियणिजोया जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी - “संदिसह णं देवाणुप्पिया! जं णं अम्हेहिं करणिजं।"
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