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प्रथम अध्ययन - प्रव्रज्या की पूर्वभूमिका
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रवाना किए गए, सोत्थिय - स्वस्तिक-चतुष्कोण-मांगलिक चिह्न विशेष, सिरिवच्छ - श्रीवत्स, णंदियावत्त- नंदिकावर्त्त-प्रत्येक दिशा में नव कोणयुक्त स्वस्तिक विशेष, वद्धमाणक - वर्धमानक, भद्दासण - भद्रासन, कलस - कलश, मच्छ - मीन युग्म, दप्पण - दर्पण, अत्थत्थिया - अर्थार्थी-याचक, अणवरयं - अनवरत-निरंतर, अभिथुणंता - संस्तवन करते हुए। ___ भावार्थ - एक हजार पुरुषों द्वारा उठायी गई पालकी में मेघकुमार के बैठ जाने पर स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंदिकावर्त्त आदि आठ मंगल द्रव्य अनुक्रम से मेघकुमार के आगे-आगे रवाना किए गए। बहुत से धनार्थी याचक आदि प्रिय और मधुर वाणी से निरंतर अभिनंदन संस्तवन करते हुए बोलने लगे।
(१५४) - “जय जय णंदा! जय जय भद्दा! जय जय णंदा! भद्द ते, अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्मं, जियविग्योऽविय वसाहि तं देव। सिद्धिंमज्झे, णिहणाहि रागदोसमल्ले, तवेणं धिइ-धणिय-बद्ध-कच्छे, महाहि य अट्टकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं अप्पमत्तो पावय वितिमिर-मणुत्तरं केवलं जाणं, गच्छ य मोक्खं परमपयं सासयं च अयलं, हंता परीसहचमूंणं अभीओ परीसहो वसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धं भवउ-त्तिकट्ठपुणो २ मंगल-जय जय सदं पउंजंति। __शब्दार्थ - जियं - जीते हुए, प्राप्त किए हुए, समणधम्म - मुनि धर्म, जियविग्यो - जितविघ्न-विघ्नों को जीत कर, वसाह - वास करो, सिद्धिंमज्झे - सिद्धत्व की आराधना में, णिहणाहि - नाश करो, राग दोसमल्ले - राग-द्वेष रूपी मल्लों-पहलवानों का, धिइ - धृतिधैर्य, धण्णिय - धनिक, बद्धकच्छे - कमर बाँधकर, महाहि - मर्दन करो, सत्तू - शत्रुओं को, झाणेणं - ध्यान द्वारा, पावय - प्राप्त करो, वितिमिरम - अज्ञानान्धकार रहित, हंता - नष्ट कर डालो, परीसह चमू - परीषहों की सेना, अभीओ - अभीत-निर्भय, अविग्धं - विघ्नं रहित, भवउ - होवें।
भावार्थ - हे आनंदप्रद! कल्याणकारिन्! लोकमंगल दायिन्! आपकी जय हो! आपका कल्याण हो। अविजित इन्द्रियों को जीतो! प्राप्त मुनि धर्म का पालन करो। राजकुमार! विघ्नों को जीत कर सिद्धि-मार्ग में निवास करो। तप एवं धैर्य रूप धन का संचय कर उत्साह के साथ
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