Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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सूत्र ६६ में बहत्तर कलाओं के अंतर्गत ऐसी कर्म कलाओं का भी उल्लेख हुआ है, जो साधारणजनों के दैनंदिन जीवन से संबद्ध हैं। अन्नोत्पत्ति, मृत्तिका एवं जलादि संयोग से वस्तु निर्माण-जलोत्पत्ति-कूप खनन, विभिन्न भोज्य, खाद्य, स्वाद्य पदार्थों का परिपाक, भवन-निर्माण आदि ऐसे कार्य हैं, जिनका एक राजा के जीवन से सीधा संबंध नहीं है किन्तु यह आवश्यक है कि राजा को इन कार्यों में होने वाले परिश्रम का अनुभव हो, जिससे उसकी महत्ता का आकलन कर सके तथा उन लोगों के प्रति उस में उदारता एवं सहानुभूति का संचार रहे।
कलाचार्य का सम्मान
(१००) तए णं से कलायरिए मेहं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरुयपजवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ सेहावित्ता सिक्खावित्ता अम्मापिऊणं उवणेइ। तए णं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं महुरेहिं वयणेहिं विउलेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेंति सम्मा0ति, स० २ ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति २ त्ता पडिविसज्जेंति।
शब्दार्थ - पीइदाणं - प्रीतिदान-प्रसन्नता पूर्वक सम्मान पूर्ण उपहार।
भावार्थ - तदनंतर कलाचार्य-कला शिक्षक मेघकुमार को गणित प्रधान, लिपि ज्ञान से . लेकर पक्षियों की बोली की पहचान पर्यंत बहत्तर कलाएं मूल रूप, अर्थ एवं प्रयोग पूर्वक पढ़ा कर, सिद्ध करवा कर माता-पिता के पास लाए। ___.. मेघकुमार के माता-पिता ने प्रसन्न होकर कला शिक्षक का मधुर वचनों द्वारा तथा प्रचुर वस्त्र, गंध, माला तथा अलंकारों द्वारा सत्कार-सम्मान किया। उन्हें आजीविका के योग्य पर्याप्त उपहार-पुरस्कार दिया और विदा किया।
(१०१) तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस
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