Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रथम अध्ययन - माता की भाव-विह्वलता
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(१२१) तुमं सि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इढे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेजे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंड समाणे रयणे रयणभुए जीवियउस्साए हिययाणंदजणणे उंबरपुप्फं व दुल्लहे सवणयाए किमंग पुण पासणयाए, णो खलु जाया! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए, तं भुंजाहि ताव जाया। विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो, तओ पच्छा अम्हेहिं, कालगएहिं परिणय-वए वडिय-कुलवंस-तंतु-कजंमि णिरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि। .. शब्दार्थ - थेजे - स्थिरताप्रद, वेसासिए - वैश्वासिक-विश्वसनीय, संमए - सम्मतअनुकूल कार्यकारी, बहुमए - बहुमान्य, अणुमए - सर्वमान्य, भंडकरंडग - रत्नमंजूषाजवाहिरात की पेटी, उस्सासए - उच्छ्वास-प्राणवायु, उंबरपुष्पं - उदुंबर पुष्प-गूलर का फूल, सवणयाए - सुनने से, पासणयाए- देखने से, विप्पओगं - विप्रयोग-विरह, वियोग, सहित्तएसहन करने के लिए, भुंजाहि- भोगो, तओ पच्छा - तत्पश्चात्, कालगएहिं - कालगत होने पर-मृत्यु प्राप्त करने पर, परिणयवए - अवस्था के परिपक्व-वृद्ध हो जाने पर, वड्डियकुलवंस-तंतु - वंश वृद्धि कर, णिरावयक्खे - सांसारिक कार्यों से निरपेक्ष-निवृत्त होकर।।
भावार्थ - माता ने कहा - तुम मेरे इकलौते पुत्र हो। बड़े ही इष्ट, प्रिय और मनोज्ञ हो। मेरे चित्त में स्थिरता और विश्रांति उत्पन्न करने वाले हो। तुम सभी के चहेते हो। रत्न-मंजूषा के समान बहुमूल्य हो। जीवन के लिए प्राण स्वरूप, हृदय के लिए आनंद प्रद हो। जिस प्रकार उदुम्बर के फूल के संबंध में सुनना ही दुर्लभ है, देखने की तो बात ही क्या, तुम वैसे ही दुर्लभ हो। पुत्र! हम क्षण भर भी तुम्हारा वियोग नहीं चाहते। जब तक हम जीवित हैं, तब तक तुम प्रचुर सांसारिक काम-भोगों का आनंद लो। हमारे कालगत हो जाने पर, पुत्र-पौत्रादि कुल परंपरा के संवर्धित हो जाने पर, वृद्धावस्था में, जब समस्त सांसारिक अपेक्षाओं से विमुक्त हो जाओ तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समीप जाकर, गृहस्थ धर्म का परित्याग कर, प्रव्रज्या स्वीकार करना। ..
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